विश्व शांति औऱ सदभाव समय की आवश्यकता :- देवेंद्र ब्रह्मचारी
सभ्य समाज में हिंसा को कोई स्थान नहीं :- देवेंद्र ब्रह्मचारी
मुंबई :-क्रिसमस के अवसर पर मुंबई में बॉम्बे आई. आर. डी. द्वारा आयोजित अंतर-धार्मिक उत्सव में एक पैनलिस्ट के रूप में भारत गौरव श्रद्धेय देवेन्द्र ब्रह्मचारी जी को आमंत्रित किया गया। पैनल चर्चा "शांति को एक मौका देने के लिए ईश्वर का संदेश" विषय पर केंद्रित थी और विभिन्न धर्मों के नेताओं को एक साथ लाया। जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में, देवेंद्र ब्रह्मचारी जी को जैन धर्म के अभ्यास के माध्यम से विश्व शांति और सद्भाव के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा कि आज समस्त विश्व जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है वह अपने आप में मन को बहुत वेदना देता है। सभ्य समाज में हिंसा का कोई स्थान नहीं है और हिंसा के अभाव में ही शांति है ,भौतिक रूप से शांति तभी संभव है जब हम अपने अंतस में शांति को महसूस करते हैं ।विश्व में करुणा और प्रेम की स्थापनाकरने वाले ईसा मसीह के 2024 वें वर्षगाँठ पर आपने मुझे यहां पर आमंत्रित किया है इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं।
देवेंद्रजी ने उपस्थित जनसमूह से कहा कि , विश्व में विभिन्न धर्म, संप्रदाय, पंथ हैं पर सबका उद्देश्य एक है शांति को प्राप्त करना। धर्म का मूल ही शांति है, क्षमा है। अनादि निधन मंत्र है णमोकार मंत्र, यह जैनधर्म का मूल मंत्र है जैन धर्म अनादि से है और इसका सिद्धांत हैं, अहिंसा का सिद्धांत अपरिग्रह का सिद्धांत, अनेकांत का सिद्धांत।अगर हम इसे जीवन में अपना लेते हैं तो कोई कारण नहीं कि किसी प्रकार की भौतिक हिंसा तो दूर, मन में भी हिंसा के भावना भी जागृत हो नही हो पायेगा।
मैं जैन धर्म अनुसार शांति क्या है, शांति हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं, और मुंबई के बहुत संस्कृत बहु स्तरीय संदर्भ में हम आपस में सद्भाव कैसे बना कर रह सकते हैं इस पर मैं अपने भावना यहां पर व्यक्त करना चाहूंगा।
जैन धर्म का जो मूल सिद्धांत है 'अनेकांत और स्यादवाद', यह सिखलाता है कि आप एक वस्तु को अपने दृष्टिकोण से देख रहे हैं और उसे सही मानते हैं और दूसरा व्यक्ति उसे अपने दृष्टिकोण से देखता है और उसे ही सही मानताहै तो आप अपनी जगह सही हैं और जो सामने वाला जो देख रहा है वह भी अपनी जगह सही है ।
मैं एक छोटा उदाहरण दूंगा , आप ऐसी हथेली में अंग्रेजी में 6 (सिक्स) लिखिए पर मुझे यहाँ से 9 दिखाई दे रहा है। लेकिन जो लिखा है वह तो सत्य है ना, आप अपनी जगह पर सही है मैं अपनी जगह पर सही हूं बस इतनी ही छोटी सी बात अगर हम मान ले ,दूसरे के दृष्टिकोण का हम सम्मान करने लगे तो निश्चित मान करके चलिए कि शांति को प्राप्त करने में देर नहीं।
प्रत्येक जीव जो शरीर के अंदर में रहा है एक आत्मा है और यह अनादि काल से चल रहा है,आज इस शरीर में ,कल किसी और शरीर में जाएगा वह शुद्ध आत्मा है लेकिन उसके ऊपर आवरण लग गया है क्रोध का, मान का, माया का और लोभ का।
इन्ही के चलते हम अपने बात को मनवाने के लिए हिंसा पर उतारू हो जाते हैं वह हिंसा भौतिक रूप से तो बहुत बाद में होती है, पहले विचारों में आती है और विचारों में ही अगर इन कषायों को हम दूर कर लें तो निश्चित मान कर चलिए कि शांति अपने आप आ जाएगी।
शांति क्या है? हिंसा का अभाव है और हिंसा में भौतिक हिंसा है, भाव हिंसा है, हम इसके भाव में भी अगर ना लाएं तो उससे बच सकते हैं और यह संभव है जब हम दूसरे के विचारों, मान्यताओं ,धार्मिक क्रियाओं को हम सम्मान दें।
मुंबई महानगर में न केवल सम्पूर्ण भारतवर्ष वरन विदेशों के भी कई लोग रहते हैं, सबकी अलग-अलग परंपराएं हैं, अपना अपना दृष्टिकोण है ,खान-पान है धार्मिक क्रियाएं हैं, लेकिन मैं ही सही हूं इस बात को लेकर अगर कोई अपने विचारधारा औरों को मनवाने का अनुचित प्रयास करता है , तो निश्चित रूप से वहां पर एक प्रतिक्रिया होगी ।
लेकिन अगर हम दूसरों परम्परा, आस्था का सम्मान करते है तो मानकर चलिए कि अपने आप म ही शांति की स्थापना करते देर नहीं है।मेरा जीवन इन्ही भावों को जन जन में जागृत करने को समर्पित हैं ।धर्म अलग-अलग हो सकते हैं,पंथ अलग-अलग हो सकता है लेकिन पारस्परिक सद्भाव का होना बहुत ही आवश्यक है और यही मेरे जीवन का उद्देश्य है सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी ना घबरावे
बैर पाप अभिमान छोड़ जग नित्य में मंगल गावे
उपरोक्त दो पंक्तियां ही जैन धर्म के सिद्धांत का निचोड़ है। इसे अपना करके निश्चित रूप से हम परस्पर सद्भाव और शांति को प्राप्त कर सकते हैं।
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