हालात ने बनाया रिक्शा ड्राइवर -शांतिलाल व्यास /भायंदर
आर्थिक परिस्थितियों ने अगर साथ दिया होता तो आज किसी बड़ी कंपनी को अपनी सेवा दे रहा होता. लेकिन 8 वीं कक्षा के बाद जैसे तैसे 10 की परीक्षा पास की और घर की जवाबदारी मेरे पर आ गयी. संघर्ष बहुत था लेकिन हार माननेवालों में से था. कहते हैं पिछलें 30 वर्षों से मीरा-भायंदर में रिक्शा चलाकर अपने परिवार पालते शांतिलाल व्यास.
राजस्थान के पाली जिला के मुंडारा गांव निवासी शांतिलाल के पिता मंदिर के पुजारी थे. भायंदर सेकंडरी स्कूल से दसवीं पास करने के बाद परिवार की जवाबदारी ने रिक्शा चलाने को मजबूर कर दिया. 1985 में रिक्शा चलाना शुरू किया ओर वर्ष 1987 स्वयं रोजगार योजना से कर्ज लेकर रिक्शा खरीदी थी दिलाने में भायंदर पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक शंकरराव झरेकर थी। 1985 से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी हैं.शांतिलाल कहते हैं की भगवान की कृपा हे की उन्हें आजतक कोई गलत आदत नहीं लगी. उन्होंने बहुत दुखों का सामना किया हैं इसलिये रस्ते पर जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करने का पूरा प्रयास करते हैं.
अपनी गाड़ी पर उन्होंने लिखा था दुल्हन ही दहेज़ हैं जिसके लिए उन्हें पहचाना जाता था. उन्होंने इसे सिर्फ लिखा ही नहीं परंतु वास्तविक जीवन इस बात को अपनाया. अपनी शादी में किसी तरह का दहेज़ नहीं लिया था.
शांतिलाल को गर्व हैं की वो पढ़ने का जो सपना पूरा नहीं कर पाये उसे उनके बच्चे पूरा कर रहे हैं. दोनों बेटें मुंबई की प्रतिष्ठित हिंदुजा कॉलेज के टॉप विद्द्यार्थियों में से हैं. जितेश बेचलर इन बेंकिंग इन्शुरेन्स और मितेश बैंकिंग एकाउंट्स व फाइनेंस कर रहा हैं. बेटी नीधी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती हैं. संभव हुआ तो बेटों को एमबीए कराने की पूरी कोशिश करेंगे. हाल ही में उनका बेटा जितेश बैंकिंग की परीक्षा में टोपर था. वो कहते हे की आज तक उनपर कोई केस हैं. संघर्ष करने से कभी नहीं डरे और ना कभी डरेंगे. पुलिस का सहयोग हमेशा मिला और यह पोलिसेवालों की वजह से अपना खुद का रिक्शा खरीद पायें. हिम्मत के कारण ही उन्होंने भायंदर(वेस्ट) के पटेल नगर में खुद का घर ले पायें.
वे अपनेआप को खुशकिस्मत मानते हैं कि लंबी पढ़ाई के बाद भी उनके बच्चे उनकी मानते हैं. वे कहते हैं की आप स्वयं अच्छे तो सब अच्छा. अच्छाई को कभी जीवन से दूर मत जाने देना क्योंकि जिसदिन यह चली गयी आपके पास से सबकुछ चला जायेगा.
प्रस्तुति-दीपक आर जैन
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