स्थानीय महानगरपालिका खेल और खिलाडियों को प्रोत्साहन दे- दीपक गुप्ता / क्रिकेट प्रशिक्षक


स्थानीय महानगरपालिका खेल और खिलाडियों को प्रोत्साहन दे-                                                            दीपक गुप्ता / क्रिकेट प्रशिक्षक  

देश में जहां भी महानगरपालिकाएं हे वहां के प्रशाशन और स्थानीय सत्ताधारी नेताओं को वहां रहते खिलाडियों के साथ साथ खेलों को प्रोत्साहन देना होगा जिससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को उपरी स्टार तक आगे बढ़ने का मौका मिलेगा और देश का नाम रोशन होगा. आज हमारे पास अनगिनित क्षेत्रों में प्रतिभाएं हे लेकिन पैसों के अभाव में उनकी प्रतिभाएं दम तोड़ देती हे. उपरोक्त विचार लंबे संघर्ष के बाद भी क्रिकेट में एक मुकाम हासिल करने के लिए प्रयत्नशील दीपक गुप्ता ने व्यक्त किये.
भायंदर पश्चिम के सेकंडरी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा के समय से ही दिलो दिमाग पर क्रिकेट का भूत सवार था. हाल ऐसे थे की खेलने के लिये सामान तो दूर जूते खरीदने के भी पैसे नहीं थे. ऐसी परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और खेलना जारी रखा और ऐसे में चैंपियंस क्रिकेट क्लब के प्रशांत दवे ने प्रतिभा को पहचाना और उसे निखारना शुरू किया. आज वे क्रिकेट प्रशिक्षक के रूप में दवे सर के मार्गदर्शन में निरंतर प्रगति की और अग्रसर हे. छह साल की उम्र से क्रिकेट खेलनेवाले दीपक ने 1500 से ज्यादा बच्चों को प्रशिक्षित किया हे. इनमे से कई बच्चे शहर के क्रिकेट क्लबों  के साथ खेल रहे हे जिसमे मुकुंद त्यागी,सौरभ यादव,सुजीन राजभर,कुणाल तडियाल,सौरभ चौधरी,आदित्य ठाकुर,यश तोलानी,जयेश जाधव,संग्राम कुरगकर प्रमुख हे.
उन्होंने बताया की उनके क्लब में कई बच्चे प्रतिभा के धनी हे लेकिन आर्थिक स्थिति के चलते प्रतिभा को तिलांजलि देनी पड़ती हे. वे बताते हे की उनके भी हाथ बंधे हे लेकिन खिलाड़ी को आगे बढ़ाने में वे जी जान लगा देते हे. अफ़सोस इस बात का हे की मनपा इस मामले में बहुत उदासीन हे. मेरा भी सपना देश के लिए खेलने का था लेकिन पारिवारिक परेशानियों के कारण वे ऐसा नहीं कर पाये लेकिन अब दूसरों को आगे बढ़ाने में कोई कसार नहीं छोड़ते. इंडियन क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्रसिंघ धोनी को वे अपना आदर्श मानते हे और प्रशांत दावे को अपना गुरु.दीपक कहते हे की इंसान कहां रहता हे उसको महत्व देने से अच्छा उसमे खूबियां कितनी हे उसे देखे तो ज्यादा अच्छा होगा. 
वे कहते हे की प्रशांत सर का  मिला होता तो भायंदर के झोपड़पट्टी में रहनेवाला यह दीपक अंधेरे में गुम हो जाता. वे कहते हे की विद्द्यार्थियों और शिक्षकों को पढाई की तरह ही खेल को भी महत्व देना चाहिये. पढाई की तरह ही खेल का भी महत्व हे. खेलों से राजनीति दूर होगी तो प्रतिभाओं को आगे आने से कोई रोक नहीं सकता.  वसई-विरार की तरह ही हमारे यहां भी खेल महोत्सव  चाहिये.उन्हें क्रिकेट में कई पुरुस्कार मिले हे और एक बड़ी अकादमी बनाकर क्रिकेट प्रतिभाओं को आगे बडाना चाहते हे.
प्रस्तुति-दीपक आर जैन   

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