किसी के पिता और गुरु को चुरा सकते, लेकिन संस्कारों को नही :- - उद्धव ठाकरे
धर्म के नाम पर देश को गुलाम करने वालों से दूर रहो
विनोद मिश्र / भायंदर
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में गुरु होना चाहिए, जो गुरु को भूल जाए वह मनुष्य होता ही नहीं। अब तो गुरु को भूलने वाले, गुरु को चुराने वाले लोग तैयार हो गए हैं। पिता चोरी करने वाले लोग तैयार हो गए हैं, लेकिन संस्कार कभी चोरी से नहीं मिलता। संस्कार जन्म जन्मांतर से मिलता है। अच्छे संस्कार लेने, अच्छे संस्कारों का जतन करने और आपका आशीर्वाद लेने आज यहां आया हूं। उपरोक्त विचार शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भायंदर पश्चिम के वालचंद हाइट्स इमारत परिसर में भवन निर्माता प्रकाश जैन द्वारा नवनिर्मित भगवान विमलनाथ जैन मंदिर के अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में आचार्य यशोवर्मसुरिश्वरजी म.सा. के समक्ष उपस्थित जनसैलाब को संबोधित करते हुए कही।
कठिन समय में साथ देने वाला महत्वपूर्ण
उद्धव ठाकरे ने कहा कि आज भी हिंदुस्थान में हिंदुहृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की हवा है। हिंदुस्थान में कहीं भी जाएं उनकी हवा कायम है और रहेगी।
पूजा में तो तीर्थ प्रसाद लेने सभी आते हैं, लेकिन संकट ,कठिन समय में जो साथ आता है वह महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि मैं संकट को संकट नहीं मानता, संकट में भी (संधि) अवसर खोजने वाला व्यक्ति हूं। मैदान में सामने जितना ताकतवर विरोधी या शत्रु हो, लड़ाई जितने में उतना ही मजा आता है और यह लड़ाई हम जीतेंगे ही।
समान नागरिक कानून चाहिए, तो संपूर्ण देश में गो वंश हत्या बंद क्यों नहीं
उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में कहा कि जो 25 - 30 वर्ष साथ तक मित्र रहे हैं, लेकिन आज वो जिस रास्ते पर जा रहे हैं। वह हमारी मंजिल नहीं थी। हमने जो सपना देखा था ,उस सपने को जिस तरह से तोड़ा मरोड़ा वह सपना हमारा नहीं था। वो हिंदुत्व हमारा नहीं था। सबका अपना धर्म होता है, सबकी अपनी भावना होती है। उस धर्म पर लोगों को गुमराह करना और देश को अपने कब्जे में रखने की राजनीति चल रही है, उसका निषेध करने और तोड़ने का ध्येय है।
दूर क्यों जाते हो..? अपने राज्य में गोवंश हत्या बंद है और बगल के राज्य में इसे खाया जाता है। हम गाय को माता मानते हैं ,वहां खाया जाता है। यह कौनसा हिंदुत्व है ..? देश में समान नागरिक कानून चाहिए, ठीक है ,लेकिन संपूर्ण देश में गोवंश हत्या बंद क्यों नहीं होती..?
आपके दिलों में जगह चाहिए
जैन मुनि आचार्य भगवंत यशोवर्मसुरिश्वरजी महाराज के समक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा कि आज आपने मुझे आसन पर बैठाया, लेकिन मुझे आसन नहीं ,आपके दिलों में जगह चाहिए। कुर्सी आता है, जाता है, लेकिन मुझे आपके हृदय में स्थान चाहिए, हृदय में स्थान मिलना महत्वपूर्ण होता है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि मेरे पिता बालासाहेब ठाकरे ने कभी कुर्सी की अभिलाषा नहीं रखी और न मैने रखी। हम तो काम करने वाले लोग हैं। इंसानियत ज्यादा जरूरी है। मेरे पिताजी कहते थे, जब हमारा जन्म होता है, तब हम एक मानव के रूप में ही जन्म लेते हैं। धर्म तो बाद में अपनाते हैं। उस धर्म का आधार लेकर देश पर कब्जा करने और सबको गुलाम करने की राजनीति की जा रही है। अभी अगर हमने अपनी आंखे नहीं खोली तो यह बंद आंखें बाद में कभी खोल नहीं पाएंगे। अभी सब लोग जाग जाओ,जागृत हो जाओ यही कहने के लिए आया हूं, जागते रहो।
पर्यावरण एक महत्वपूर्ण विषय है
उद्धव ठाकरे ने कहा कि पर्यावरण एक महत्वपूर्ण विषय है।पेड़,वृक्ष, पौधों का भी संरक्षण करना चाहिए। अभी परिस्थिति ऐसी आ गई है कि विकास के नाम पर वृक्षों को काटा जा रहा है। विकास चाहिए, बड़ी सड़के चाहिए जैसे अपने घर से हॉस्पिटल जल्दी पहुंचना है। हॉस्पिटल जाने के लिए बड़ा रास्ता, सड़क बनाना ,यह विकास नहीं है। हॉस्पिटल जाने की जरूरत या नौबत ही नहीं आए,ऐसा वातावरण निर्माण करना सही विकास है।
आपका आशीर्वाद लेने आया हूं
उद्धव ठाकरे ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे के साथ आप सभी का एक अच्छा रिश्ता था। उस रिश्ते में कुछ गलतफहमी की दीवार खड़ी हो गई थी। उस गलत फहमी की दीवार को तोड़ने आया हूं। हम सब एक हैं, हम सब यहीं रहते हैं, हमें यहीं साथ रहना है।
जीवन में एक नया कदम उठा रहा हूं। उसमें आप सबका साथ चाहिए,आशीर्वाद चाहिए। सिंहासन मिले ना मिले आप सबके हृदय में स्थान चाहिए,आप सबके हृदय में स्थान मिल गया तो मैं समझूंगा मेरी जिंदगी सफल हो गई।
बाला साहेब ठाकरे ने छोड़ दिया था मांसाहार
आचार्य भगवंत यशोवर्मसुरिश्वरजी महाराज ने अतीत के एक क्षण को याद करते हुए बताया कि १४ अप्रैल १९९१ को दादर में लब्दीसुरी जैन ज्ञान मंदिर में शिवसेनाप्रमुख व हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे ने महाराज के तेज और ज्ञान से प्रभावित होकर जीवन में कुछ त्याग करने के लिए संपूर्ण जीवन भर मांसाहार का त्याग कर दिया था। उस समय मनोहर जोशी ने भी आठ दिनों के लिए मांसाहार का त्याग कर दिया था।
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