गुरु वल्लभ के विचारों से समाज का विकास होगा
जैन धर्म घर घर पहुंचे गच्छाधिपति श्री धर्मधुरंधर सूरीश्वरजी
दीपक आर जैनमुंबई-शेत्रुंजय तीर्थ समान व गुरु वल्लभ के समाधी स्थल ऐसे भायखला जैन मंदिर में चातुर्मास हेतु बिराजमान पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभसूरिस्वरजी म.सा. समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति परम पूज्य श्रुत भास्कर गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय धर्मधुरंधर सूरीश्वरजी म.सा. के बारे में कुछ और पन्नों में लिखना बहुत कठिन कार्य हैं. कहते है की पूत के गुण पालने में ही पता चल जाते हैं और इसीलिए बचपन से ही धर्म के प्रति उनमे देखने को मिली और संस्कारों में पीला बड़े और खेलने कूदने के दिनों में जैन साधु के कठिन मार्ग को इन्होने चुना. किसी ने शायद कल्पना भी नहीं की होगी की आगे चलकर वे जिनशासन के उच्च पद यानि गच्छाधिपति बनेगे. पढ़ने में मग्न रहनेवाले श्री धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी म.सा. की गणना प्रथम पंकती के विद्वानों में होती हैं जो किसी भी विषय पर घंटों बोलकर समाज में परिवर्तन लाने की चाह रखते हैं.
भारत की राजधानी मैं जन्मे सांसारिक नाम सुनील था. एक दूसरे के गुणों को देखकर उसे आगे बढ़ाना आपकी खूबी हैं और यही वजह हैं की आपकी प्रेरणा और उपस्थिति में जिनशासन के कई बड़े बड़े काम हुए हैं. भायंदर ही नहीं हर जगह आपके चातुर्मास बहुत ही ऐतिहासिक व यादगार रहे यही वजह रही की आपके विदाई समारोह में लोगों के आखों से आसो नहीं रुकते फिर वह बच्चा हो या जवान या बड़ा. आपके व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं उनमे मुख्य हें नैतिक मूल्यों के विकास व अहिंसा के प्रचार प्रसार हेतु कटिबद्ध हैं. वे चाहते है कि पंजाब केसरी आचार्य श्री विजय वल्लभसूरिस्वरजी म.सा. के विचारों को घर घर पहुचाये व उनके सपनो को पूर्ण करना उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य हैं. अपने साधु जीवन में लाखों लोगों को अपने आध्यात्मिक उपदेशों से प्रेरित करने का पुण्य कार्य किया हैं. विश्व में हिंसा अहिंसा के मार्ग से ही खत्म होगी. वे कहते हैं की हर काम गोली से नहीं होगा.जीवन में शिक्षा के महत्व को कभी न भूले. समाज का विकास शिक्षा से ही संभव हैं.
.स्वयं घिस घिस कर चंदन जग को शीतलता देता हैं,स्वयं घिस घिस कर मेहंदी रंग देती हैं,वृक्ष झुलस झुलसकर छावं देता हैं इसी तरह स्वयं कष्ट उठाकर भी महापुरुष औरों को प्रसन्नता देते हैं. गुरुदेव की इस चिंतन की चांदनी में दुनिया को ऐसा शीतल प्रकाश मिल रहा है की उसकी सुहानी किरणें अनेको के जीवन पथ को आलोकित कर रही हैं.
प्यार कितना मधुर शब्द हैं,कितनी सुरीली और सुहावनी हैं इसकी ध्वनि. विश्व के प्रायः सभी महामानव इसे केंद्र बिंदु बनाकर इसके इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं. जैसे सूर्य और चंद्र के चारों और नक्षत्र परिक्रमा किया करते हैं.
पूज्यपाद गुरुदेव प्रेम के साक्षात रूप हैं .जीवन के रोम रोम में प्रेम प्रवर्तमान हैं. उनका संपूर्ण जीवन इस महासाध्य की उपासना का एक अविरल स्त्रोत हैं. उनके जीवन का सारा स्वरुप ही प्रेम को केंद्र मानकर निर्धारित किया हुआ सा लगता हैं . जिनशासन को जन जन जन तक पहुचाने के लिए आचार्यश्री के प्रयास निरंतर जारी हैं.आडंबरों से दूर धर्म की अलख लोगों में जगे उसके लिए वे तत्पर रहते हैं. मीरा-भायंदर की संथारा रैली का नेतृत्व हो या मॉस प्रतिबन्ध को लेकर विवाद का सुलटारा हो दोनों ही आंदोलन में जिनशासन के प्रति उनकी श्रद्धा और इस शासन की कही भी अवेहलना न हो देखने को मिली. एक आम साधु की भूमिका मैं इस आंदोलन में रहकर उन्होंने लाखो दिलों का मन मोह लिया था. इसकी अपार सफलता का श्रेय उन्होंने स्वयं न लेकर परमात्मा को दिया यह उनकी सादगी और महानता की मिसाल हैं.
वे उच्चकोटि के सहृदय आचार्य हैं. उनका जीवन,आचार और विचार का पावन संगम हैं.आज के युग में प्रतिभा संपन्न विद्द्वानों की कमी नहीं हैं लेकिन वे जन जन के ह्रदय के हार और जनमन के सम्राट हैं .सहृदयता,नियमबद्धता,परिश्रमशीलता,परदुःख कातरता आदि जो सद्गुण साधु जीवन में अपेक्षित हैं,वे सभी गुरुदेव में विद्धमान हैं .उनका ह्रदय फूल से भी अधिक कोमल और मक्खन से भी अधिक मृद हैं. उनकी नवनीत सी स्निग्ध आहृदयता,विषण्ण हृदयों के लिए मरहम का काम देती हैं . सुहावनी सुबह से भी उसका आकर्षण ज्यादा हैं.
भगवान महावीर पर वे कहते हैं कि उनका जीवन और दर्शन बहुआयामी हैं. महावीर ने जहां अहिंसा,अनेकान्त,अपरिग्रह का दृश्टिकोण दिया वहां उन्होंने स्वस्थ समाज सरंचना के सूत्र भी दिए. महावीर क्रांतदृस्टा ही नहीं,उत्क्रान्तेचा महापुरुष थे. उनके पास ऐसी क्षमता थी कि जिसमे वे पाखण्ड को सेमल की रुई की तरह रेशे रेशे कर उड़ा देते थे. जातिवाद,दासप्रथा,नारी उत्पीडन,कथनी,करनी मैं विसंगति आदि युगीन अंधेरों को दूर करने के लिए उन्होंने समता,सामंजस्य और सदाचार की ज्योति प्रज्वलित कि.उस ज्योति में इतनी प्रखरता थी कि सघन अंधेरें भी एक साथ दरक हो गये.
उन्होंने कहा की भगवान महावीर की ज्योति से जिसने भी अपनी आखों को आजा उसका प्रातः प्रशस्त हो गया. आचार्यश्री ने कहा की भगवान महावीर अंदर और बहार का युद्ध समाप्त कर जिस उचाई तक पहुंचे वहां तक जाने में हमे भी कुछ पड़ाव अवश्य तय करने होंगे जैसे हम सही अर्थों में जीना सीखें औरों को समझना और सहन सीखे. उन्होंने कहा की ऐसे सभी कर्मों को अशुभ माने जो जीवनमूल्यों का अंत कर दे.उन्होंने कहा की अपने अच्छे बुरे परिणामों का विवेक जागृत रखे.
उन्होंने कहा की स्वयं का निर्माता होना जरूरी होगा,और ऐसा करके ही अहिंसक समाज का निर्माण कर सकेंगे. वर्तमान में मानवतावादी शक्तियां इस दिशा मैं ध्यान देकर राष्ट्रीय जीवन को नया मोड़ देने का प्रयास करें. उन्होंने लोगों से अपील की कि अहिंसा की सकारात्मक ऊर्जा बढाकर हम निशित रूप से समृद्धि,सुख,शांति के साथ अहिंसा,करुणा,मैत्री,सौहार्द,सदभावना सहजीवन को प्राप्त कर सकते हैं. परिस्थितियों का अवलोकन करें तो स्पस्ट रूप से नजर आता हैं की वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता हैं.परम पूज्य गुरुदेव ने हमेशा समाज के विकास और उसके उत्थान पर ध्यान दिया व दे रहे हैं . उन्हें क्रांतिकारी विचारक कहा जा सकता हैं क्योंकि उन्होंने धार्मिक कार्यों के साथ साथ सामाजिक व शिक्षा को भी ज्यादा महत्व दे रहे हैं.वे हमेशा कहते की जिस समाज मैं शिक्षा नहीं उस समाज का कोई महत्व नही.
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