अहिंसा और शांति का संदेश दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाए

मीरा-भायंदर में पर्व पर्युषण की जोरदार तैयारियां  
 भायंदर- श्री भटेवा पार्श्वनाथ जैन संघ में चातुर्मास हेतू बिराजमान त्रिस्तुतिक समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य श्री रविंद्र सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य रत्न वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी म.सा के आज्ञानुवर्ती हिंसा गो क्रांति मंच के संस्थापक क्रन्तिकारी मुनि श्री नीलेशमुनि ने पर्व पर्युषण शुरू होने के पूर्व कहा की आज पुरे विश्व को अहिंसा की सबसे ज्यादा जरुरत हैं .पर्युषण महापर्व अहिंसा,मैत्री और शमा का पर्व हैं. इस पर्व में आराधक भक्ति भाव से जुड़कर परम सुख की प्राप्ति करता हैं.अहिंसा और मैत्री से ही शांति मिल सकती हैं.आज जो हिंसा,आतंक,आपसी द्वेष,नक्सलवाद,भ्रस्टाचार जैसी ज्वलंत समस्याएं आज पुरे विश्व के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं. इन समस्याओं का समाधान पर्युषण पर्व एक प्रेरणा है,पथ है,मार्गदर्शन हैं तथा अहिंसक जीवन शैली का प्रयोग हैं.उन्होंने कहा की आज की भौतिकता की चकाचोंध व भागती जिंदगी की अंधी दौड़ में इस महापर्व की प्रासंगिकता को बनाये रखना बहुत जरूरी हैं. इसके लिए समाज संवेदनशील बने तथा युवा पीढ़ी किस तरह इसके महत्व से परिचित हो इस पर गंभीरता से विचार करे. वे सामायिक,मौन,जप,ध्यान,स्वाध्याय,आहार संयम,इंद्रिय निग्रह,जीवदया आदि के माध्यम से आत्म चेतना को जगाने वाले इन दुर्लभ क्षणों से स्वयं लाभान्वित हो और जन -जन के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करे.

क्रांतिकारी संत ने कहा की हम सफल जीवन जी रहे हैं या असफल, सुखी हैं या दुःखी, आगे बढ़ रहे हैं या पीछे जा रहे हैं.यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस दृष्टि से देख रहे हैं या नाप रहे हैं? हम सफलता का मापदण्ड इस बात से तय करते हैं कि जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण अपनाया है। जिस चीज को हम अपना केन्द्र मानते हैं या धुरी बनाते हैं उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं.मुनिराज ने कहा की जिस दृष्टिकोण से जीवन का लक्ष्य बनाया है उसको पाने में जीवन की अधिकांश ऊर्जा लगाते हैं.सुख या दुःख वस्तु के संग्रह से नापा जायेगा. इस दृष्टिकोण से सुख-दुःख सापेक्षिक शब्द बन जाता है.किसी एक कार्य को करने में या कुछ उपलब्धियों को प्राप्त करने में एक व्यक्ति सुख की अनुभूति कर सकता है लेकिन दूसरा दुःख की.अतः यह व्यक्तिगत अनुभूति है और इसके निरपेक्ष मापदण्ड नहीं हो सकते.अतः जैसा एक व्यक्ति अपने लिए लक्ष्य तय करेगा वैसा ही उसका मापदण्ड होगा और उसी से सुख-दुःख, सफलता-असफलता तय करेगा व सुख-दुःख का आभास करेगा.वास्तविक या निरपेक्ष सुख और सुखी जीवन वस्तु आधारित नहीं है बल्कि सिद्धांत या मूल्य आधारित है और इस प्रकार का सुख सबके लिए समान अनुभूतिपरक है.पर्व पर्युषण में आठ दिन आराधना कर जीवन को सफल बनाये व अहिंसा को विश्व के कोने कोने में पहुंचाने का संकल्प लेकर दुनिया को जीयो हुए जीने दो का सन्देश दे. 

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