अशांति की यात्रा- वैभवरत्न विजयजी म.सा.
अशांति की यात्रा-
प्रवचनकार - श्रुत प्रभावक मुनिराज श्री वैभवरत्न विजयजी म.सा.
.
आप अपने जीवन में ज़्यादा से ज़्यादा समझौता करते हो। यही समाधान की भूमिका को समाधि तक ले जाना हे। हर एक बीज पुष्प बनने की योग्यता रखता हे लेकिन उसी बीज को हम कंकर मानेंगे तो कोई फल नहीं मिलेगा। एक सामर्थ्य का पराक्रम जगाना ही पड़ेगा तभी मन के भीतर में जो आत्म जाग्रति का बीज पड़ा हे वो खिल उठेगा वरना ऐसे ही अनंतकाल तक संसार में भटकना लगा रहेगा। कालोकाल जीव के मन में हमेशा से अशांति का युध्ध चलता आ रहा हे, लेकिन अब हमें शांति का बीज बोना हे - हा ! देर लगेगी, लंबा रास्ता हे लेकिन हमें धैर्य धरना हे और फिर यही बीज हमारी अशांति की यात्रा समाप्त करेगा और शांति की महायात्रा शुरू करवाएगा। अशांति शंका - कुशंका, असफलता, असमाधि के दायरे में घेर के रखेगी और शांति ककर में से भी फूल खिला देगी बस थोड़ा समय देना हे।
हर जीव में अशांति का बीज बोने वाले भय, झूठ,लालसा, मोह आदि कुसंस्कार हे इन्ही कुसंस्कारों को हमें तोडना हे। अतृप्ति को छोड़ के संतोषी बनना हे, अधैर्य को छोड़ के धैर्यवान बनना हे। कागज की नाव सागर में नहीं चल सकती वैसे अशांत मन संसार सागर में डामाडोल रहेगा हमें इस मन को शांत बना के संसार सागर से पार होना हे। शांति की पूर्णता आने पर ही जीवन का सही आनंद मिलेगा और अव्याबाध सुख हे जहा वो मोक्ष की राह पर चलने का अवसर प्राप्त होगा।
स्थल-श्री सात रस्ता जैन संघ - मुंबई
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें