धर्म की बसंत बहार यानि चातुर्मास-धर्मधुरन्धरसूरिस्वरजी

                                            

 धर्म की बसंत बहार यानि चातुर्मास
 धर्मधुरन्धर सूरिस्वरजी का प्रवचन
दीपक आर जैन
भायंदर-इस समय हम इतिहास के ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ मानवता,संस्कार,संस्कृति और जीने का ढंग एक नये भविष्य की और छलांग लगा रही हैं. परिवर्तन के इस दौर में परंपरागत स्वीकृत मूल्यों को बचाये रखना चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया हैं. धर्म,कर्म,व्यव्हार और हमारे कार्य करने की क्रिया की परिभाषा ऐसा लगता हैं,पूर्ण रूप से बदल गयी हैं. मान्य सांस्कृतिक सामाजिक परंपरा के अनुसार धर्म करने की प्रवृत्ति बदल रही हैं.
 उपरोक्त विचार पंजाब केसरी प. पू. आचार्य श्री वल्लभ सूरिस्वरजी म. सा. समुदाय के गच्छाधिपति प.पू. आचर्य श्री धर्मधुरन्धर सुरिस्वरजी म.सा.ने व्यक्त किये. भायंदर(पश्चिम)के श्री पार्श्व-प्रेम श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपगच्छ संघ में चातुर्मास हेतु बिराजमान आचार्यश्री ने कहा की धार्मिक भावना का ज्वारभाटा चातुर्मास काल में अधिक दिखाई देता हैं,पर यह भी सत्य हैं कि इस भावना के प्रति हमारी सतत लगन हमे धार्मिक बनाने मैं मददगार होती हैं. इसी भावना से हमे अजेय आशाएं,सृजनशील ऊर्जा औरमैं विश्वास के रूप मैं काम करता हैं आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त होती है,जो जीवन को सुन्दर व्यवहारिकता प्रदान करती हैं,सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों मैं. यही धर्म मनुष्य के जीवन मैं विश्वास के रूप मैं काम करता हैं. अच्छे धर्म का विभेद धर्म से किया जा सकता हैं,क्योंकि जी तो सभी रहे हैं,पर कैसे जी रहे है यह बड़ा प्रश्न हैं.देव,गुरु और धर्म इन तीनों तत्वों का सानिध्य हमे चातुर्मास से मिलता हैं. धर्म वह अनुशाशन हैं जो अंतरात्मा को स्पर्श करता हैं,बुराइयों से संघर्ष करने मैं सहायता करता हैं. चातुर्मास यानि धर्म की बसंत बहार हैं जितना पा सको पा लो.
आचार्यश्री ने कहा की धर्म काम,क्रोध,लोभ,मोह मैं हमारी रक्षा करता हैं,अर्थात हमे बुराइयों से दूर रहने को प्रेरित करता हैं. जीवन मैं धर्म का आभाव मनुष्य के लिए मृतक के सामान हैं. इसलिए कहते हैं कि जब तक सांस हैं तब तक हमारी आस को विश्वास प्राप्त करने का आत्मबल धर्म से प्राप्त होता हैं. उन्होंने कहा की धार्मिक अनुभूतियों को प्राप्त करने के लिए धर्म का वातावरण चाहिए जो हमे चातुर्मास के माध्यम से सहज ही प्राप्त होता हैं. धर्मधुरन्धरजी ने कहा कि अहंभाव की कठोरता से जीवित कर ऋदय मैं शमभवलाने का काम धार्मिक क्रिया-टप जप आराधना मैं होता हैं. यह सब करने का विशिस्ट मोका चातुर्मास के माध्यम से मिलता हैं. जीवन मैं चार प्रयोजनों धर्म,काम,मोक्ष के संबंध में पालन करने योग्य मनुष्य का समूचा कर्तव्य हैं. इसका सबको तथा आध्यात्मिक पूर्णता के लिए चातुर्मास एक प्रकार का प्रशिक्षण सत्र हैं. इस सत्र मैं प्रशिक्षण लेकर हम अपने जीवन को अनेक बुराइयों से बचाकर जीवन मैं आमूल परिवर्तन ला सकते हैं. पहले की अपेक्षा और अच्छे बन जाने के बाद हम और ज्यादा अच्छे बनने का प्रयास करते हैं.
गच्छाधिपति की निश्रा मैं रविवार को पंजाब केसरी विजय वल्लभसूरीस्वरजी म.सा. स्थापित संस्थाओं के पदाधिकारियों का सम्मलेन संपन्न हुआ. 

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