जिनशासन के सिद्धांतों का अभिनंदन हैं

जिनशासन के सिद्धांतों का अभिनंदन हैं


जै
न धर्म के अद्वितीय आलोक, तप और ज्ञान के महाशिखर, तीर्थंकर परंपरा के सजीव प्रतिनिधि, धर्म, करुणा और अपरिग्रह के उज्ज्वल दीप, भगवान महावीर के 77 वीं पाट परम्परा पर विराजमान  परम श्रद्धेय गच्छाधिपति शांतिदूत आचार्य श्रीमद विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज को पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किए जाने की घोषणा सम्पूर्ण जैन समाज के लिए आनंद, गौरव और गर्व का ऐसा क्षण है, जिसे शब्दों में समेट पाना असंभव है।

यह केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि हमारे धर्म की अमूल्य शिक्षाओं, अहिंसा के शाश्वत सिद्धांतों और चरित्र की दृढ़ता का वैश्विक अभिनंदन है। यह स्वर्णिम पल प्रमाण है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाला हर प्रयास एक दिन विश्वमंच पर गौरवशाली पहचान पाता है। आचार्यश्री का तपः तेज और दिव्य जीवन भारतीय संस्कृति और जैन धर्म के समर्पण, शांति और सहिष्णुता के आदर्शों का सजीव रूप है।

आचार्यश्री को यह सम्मान केवल उनके ज्ञान और साधना के लिए नहीं, बल्कि उनकी प्रेरणा से प्रकाशित हो रही असंख्य आत्माओं के उत्थान का प्रतीक है। यह उनके तप, त्याग और धर्मोपदेशों का वह फलित फूल है, जिसने समूचे विश्व को जैन धर्म के महान आदर्शों की सुगंध से महका दिया है।

यह क्षण जैन समाज के लिए एक नवीन प्रकाश स्तंभ है, जो हमें स्मरण कराता है कि हमारे सिद्धांतों और आदर्शों की शक्ति अडिग और अजेय है। यह हमारे धर्म की विजय है, हमारी संस्कृति की विजय है।

आइए, हम सभी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के अवसर पर एकजुट होकर आचार्यश्री के चरणों में नमन करें और धर्म की दिव्य ज्योति को प्रज्वलित रखने का संकल्प लें।

“जय जिनशासन। जय गुरुदेव "

श्री पदमचंद इन्दर कुमारी डागा अतिथि गृह,

बरखेडा (जयपुर)आगरा,दिल्ली 


🙏

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