बाल अवस्था से ही धर्म के प्रति गहरी रुचि थी

आचार्य बनने की और पंन्यास प्रवर श्री प्रशांतशेखर विजयजी म.सा.

जीवन परिचय


वि
क्रम संवत 2031, फागण सुद चोथ,23 मार्च,1977 के दिन सरियदवाले लीलपुरा निवासी पिता रमणिक लाल मातुश्री लीलाबेन की रत्नकुक्षी से पुत्ररत्न का जन्म हुआ और नाम रखा गया प्रकाश।चारों भाइयों में तीसरे नंबर वाले प्रकाश को धर्म के प्रति बचपन से ही रुचि थी और,इसलिए बाल्यकाल में ही वैराग्य का उदय हुआ। 

धर्म और धार्मिकता का अध्य्यन करते हुए विक्रम संवत 2048, जेठ वद छठ, दिनांक 21 जून 1992 के शुभ दिन विजय मुहूर्त मे श्री 108 पार्श्वनाथ भक्तिविहार महाप्रासाद के तत्वावधान में शंखेश्वर महातीर्थ तीर्थ में दीक्षा अंगीकार कर आत्म कल्याण के लिए बढ़ने लगे।परम पूज्य प्रशांतमूर्ति धर्मध्रुवतारक तपागच्छाधिपति आचार्य श्री प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य , पुण्य प्रभावक,तेजस्वी धारदार वाणी के स्वामी,शासन प्रभावक,श्री जंगम तीर्थ प्रेरक परम पूज्य आचार्य श्री रत्नशेखर सूरीश्वन म.सा. की वाणी से प्रेरित होकर संयम पथ की और अग्रसर हुए और उनके शिष्य बने।दीक्षा के बाद आपका नामकरण मुनिश्री प्रशांतशेखर विजयजी म.सा.हुआ। पूज्य गुरुदेव की सेवा करते हुए आपकी बड़ी दीक्षा विक्रम संवत 2048, अषाढ वद छठ, यानी 21 जुलाई 1992 को इसी स्थल पर हुई।

विक्रम संवत 2070, फागण सुद अष्टमी,8 मार्च 2014 में श्री आदिनाथ जैन मंदिर, श्री बाबु अमीचंद पन्नालाल ट्रस्ट, वालकेश्वर,मुंबई में आपको पंन्यास पद दिया गया। ज्ञान-ध्यान, सेवा और वैयाक्च्च भक्ति करते हुए आप गुरु सेवा में लीन रहे। आपकी सरलता ही आपकी पहचान हैं।आपकी तरफ कोई भी सहज भाव से आकर्षित हो जाता है क्योकि आपका सरल स्वभाव अत्यंत आत्मीय हैं। संयम जीवन में नियमित अखंड मंत्र माला जाप आदि करने से आपमें आध्यात्मिक शक्ति का संचार हुआ । आपने तपागच्छाधिपति दादा गुरुदेव की 18 साल तक अखंड सेवा की व वैयाक्च का प्राधान्य गुण ही आपकी सूरिपद की योग्यता और पात्रता को सिद्ध करता है।

अपने गुरुदेव के साथ रहकर अनेक शासन प्रभावना के कार्यों में साक्षी रहे। साहित्य क्षेत्र में भी उपयोगी बने ऐसे साहित्य में पूजन विधिविधान के 50 प्रतों का सेट, अष्टान्हिका प्रवचनमाला, नवस्मरण प्रत, 12 पर्व आराधना सेट आदि प्रकाशित किये है।आपने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, कच्छ, बिहार आदि क्षेत्रों में विचरण करके लोगों में धर्म भावना जगाई है। आपके शिष्यों में बारसा सूत्र कंठस्थ कर्ता मुनि श्री शौर्यशेखर विजयजी म.सा.,मधुर प्रवचनकार, गुरुदेव समर्पण प्रेमी बालमुनि श्री प्रेमरत्न विजयजी म.सा. एवं प्रशिष्य बालमुनि श्री पार्श्वरत्न विजयजी म.सा. है।

शासन देव भगवान महावीर से यही प्रार्थना है कि आप जिन शासन के उच्च ऐसे आचार्य पद पर आरुढ होकर जिनशासन का व भक्ति सूरीश्वरजी समुदाय का नाम रोशन करें।

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