जैन समाज को एक करने के प्रयास हो

दिव्येश चन्द्र सागरजी के प्रवचन 
भायंदर-समस्त जैन समाज को एक करने के प्रयासों पर बहुत गंभीरता से काम होना चाहिए. यह आज की आवश्यकता हैं. देवसूर तपागच्छ सरंक्षक,आगम विशारद परम पूज्य आचार्य श्री आनंदसागरजी म.सा. जैन धर्म में एक मिशाल थे. उन्होंने जैन धर्म के विकास विस्तार के लिए जो कुछ किया वह कुछ शब्दों में बताना बहुत मुश्किल कार्य हैं. उनके बारे में जितना बोला जाएं कम होगा.
उपरोक्त विचार भायंदर (वेस्ट) स्थित सीमंधर स्वामी जैन मंदिर में श्री पार्श्व प्रेम श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वाधान में चातुर्मास हेतू बिराजमान राष्ट्र संत आचार्य श्री अशोकसागरसूरीस्वरजी म.सा. के शिष्य रत्न पन्यास प्रवर श्री दिव्येश चंद्र सागरजी म.सा. ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये. वे 45 आगम के विशारद थे. उन्होंने बताया की चातुर्मास के लिए जब सभी जैन संघो ने आचार्य पदवी के लिए विनंती की तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया व कहा की वे इसके  काबिल नहीं हैं जबकि वे अद्भुत ज्ञानी थे.लेकिन जब संघ का आग्रह देखा तो कहा की मेरी एक शर्त हैं की सूरत शहर के सभी संघ एक होते हैं तो में आचार्य पद ख़ुशी ख़ुशी ग्रहण करूंगा.गुरुदेव ने उस समय सभी को एक मंच पर लाकर संघ की महिमा पर प्रकाश डाला तब सभी ने शमा-याचना कर एकता की डोरी में ऐसे बंधे की वह आज भी जारी हैं.पन्यास प्रवर ने कहा की ऐसे अनेकोनेक प्रसंग हैं जिसमे गुरुदेव के बारे में जानने को मिलेगा. उन्होंने कहा की गुरुदेव को पुण्य स्मरण करने का दिन 30 जुलाई को आ रहा हैं. इस गुरु गुणानुवाद सभा में उपस्थित रहकर गुरु के कार्यों को जाने और उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करे.
उन्होंने बताया की चातुर्मासिक आराधना के तहत समवसरण की शानदार रचना के साथ परमात्मा की अहर प्रातिहार्य भक्ति संवेदना उत्सव मनाया गया. 45 आगमतप की आराधना हर्षोल्लास के साथ चल रही हैं. संघ में 9 दिन की नवकार मंत्र की अखंड आराधना एकाशना  चल रही हैं. इसके अलावा अनेक कार्यक्रम आपकी निश्रा में संपन्न होंगे.     

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