वर्तमान तपागच्छ के विराट स्वरुप के पीछे गुरु आत्म का अदम्य पुरुषार्थ


गुरु आत्मारामजी म.सा. की पुण्य तिथि
दीपक आर.जैन  
मुंबई-वरली  में अनंत उपकारी पंजाब देशोद्धारक आचार्य भगवंत *श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वर जी .सा.( गुरु आत्म ) की 121वीं पावन पुण्य तिथि* के दिवस *गच्छाधिपति आचार्य भ.श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा.*की निश्रा में परम पूज्य विजयानंदजी म.सा. की गुणानुवाद सभा व साधर्मिक सेवा का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ.इस अवसर पर अनेक गुरुभक्त तथा दानदाता उपस्थित थे।
श्री आत्म वल्लभ साधर्मिक उत्कर्ष संघ  द्वारा वर्ली स्थित बेडावाला हॉल में आयोजित कार्यक्रम में धर्मसभा को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानंदसूरीस्वरजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा की *गुरु आत्म तो हमारी आत्मा है और हमेशा रहेंगें. आज वर्तमान तपागच्छ का जो विराट स्वरुप दिखाई दे रहा है उसके पीछे गुरु आत्म का अदम्य पुरुषार्थ , तप - त्याग,साहस और सत्वशाली शौर्य है । उनके मानस पुत्र गुरु वल्लभ ने जैन शासन पर जो अनंत उपकार किये हैं उनसे जन्म जन्मांतरों तक भी उतार नही हो सकते । पूज्या माता जी म.सा. श्री अमितगुणाश्रीजी म.सा. की प्रेरणा से स्थापित श्री आत्म वल्लभ साधर्मिक उत्कर्ष संस्था के द्वारा जो कार्य किये जा रहे हैं उनसे जैन शासन की अभूतपूर्व प्रभावना हो रही है।वर्तमान में ऐसे कार्यों की आवश्यकता हैं और संस्था गुरु के नाम को सार्थक कर रही हैं. 
कार्यक्रम के शुरुवात में गुरु आत्म के चित्र पर श्री इंदरमल जी राणावत द्वारा माल्यार्पण और दीप प्रागट्य किया गया । संस्था के पारस जैन (बेड़ावाला) ने  बताया गया कि *श्री वल्लभ नारी निकेतन संस्था* में स्त्रियों के द्वारा साधर्मीक भक्ति तथा उत्कर्ष के अनुमोदनीय कार्य किये जा रहे हैं.संस्था द्वारा 1800 साधर्मिक परिवारों को प्रति माह सहयोग देकर उनके सर्वांगीण विकास में भूमिका निभाई जा रही है साथ साथ शैक्षणिक व चिकित्सा के क्षेत्र में भी काम कर रही हैं.
इस कार्यक्रम में प्रखर प्रवचनकार *पन्यास प्रवर श्री चिदानंद विजय जी म.के सांसारिक पिता सुश्रावक खजांचीलालजी जैन लिगा का भी गुणानुवाद किया गया* और उनकी आत्मा की शांति और सद्गति हेतु 12 नवकार गिने गए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम