जिनसाशन का गौरव पंजाब केसरी आचार्य श्री विजय वल्लभसूरीस्वरजी म.सा.

 समाज विकास में गुरुदेव का अतुलनीय योगदान 
                                                                                           
दीपक आर जैन /मुंबई 
आचार्य मानवता का भव्य प्रतिक हैं. जान जीवन का उच्चतम रूप आचार्य मैं ही प्रस्तावित होता हैं. जैन लोक चेतना के विकास के संरक्षण और प्रसारण मैं आचार्य का प्राधान्य स्पष्ट हैं.वह जान जीवन,सभ्यता और संस्कारों की विचारधारा का सफल प्रतिनिधि हैं,उसका उदार ह्रदय अखण्ड विश्वमैत्री का परिचायक हैं पंजाब केसरी परम पूज्य आचार्य श्री विजय वल्ल्लभसूरीस्वरजी म. सा.वे ऐसे ही प्रतापपूर्ण प्रतिभा संपन्न  थे.
गुरुदेव त्याग और वैराग्य के,क्षमा और प्रेम के,स्नेह और सरलता के,विनय और वैयावृत के साक्षात प्रतीक एवं शांति व सौम्यता की साक्षात मंगलमूर्ति थे. उनकी संयम एवं साधनामय जीवन यात्रा सतत लक्ष्य बिंदु की और ही अग्रसर रही थी. जिस तरह कल कल करती सरित्ता की निर्मल अजस्त्र धरा लहरों से अठखेलियां करती मार्ग की विघ्न बाधाओं को चीरकर अपनी विजय ध्वजा लहराती हुई,सतत प्रवहमान रहती हैं. उसी प्रकार आचार्य  गुरुदेव की संयंधारा भी उछलती कूदती विचार उर्मियों से अठखेलियां करती दुर्गुणादि मार्ग बाधाओं की चट्टानों को चीरती उनके वृक्षस्थल पर अपनी कीर्तिगाथा के गौरवमय चिन्हों की स्पष्ट अमिट छाप लगाती हुई कल-कल,छल-छल निरंतर लक्ष्य की और ही प्रवहमान रही और निरंतर बढ़ती ही रही.
एक विचारक ने कहा हैं 'सुख की चांदनी में सभी हंस सकते हैं,परन्तु दुःख की दोपहरी में हंसना सरल नही.'गुरुदेव ने सुख की सुबह चांदनी में ही नहीं बल्कि दुःख की दोपहरी में भी हंसना सीखा. कभी भी किसी भी अवस्था में आप सदा मुस्कराते रहे. मुश्किलें उन्हें हतोत्साहित नहीं करती पर प्रोत्साहित ही करती थी.सदा प्रसन्न रहना ही उनका सहज गुण था.
आपका ऊर्जास्वल व्यक्तित्व होने के कारण निर्मल प्रेरक जीवन के लिए अनुकरणीय हैं. पूज्यपाद जागरूक संयमी साधक ही नहीं परन्तु गंभीर चिंतक भी थे. इस मौलिक चिंतन से साहित्यिक संसार को ही चमकृत नहीं किया अपितु आंतरिक जागृत को भी उद्बोधित किया है.आपकी तेजस्वितापूर्ण प्रभा प्राणीमात्र के लिए अनुकरणीय हैं. विश्व विनाश के कगार पर खड़ा हैं. अनु परमाणु आयुधों की विभीषिकाए उमड़ उमड़ कर मंडरा रही हैं. सभी के ह्रदय धड़क रहे हैं,न अमीरों को चैन न गरीबों को शांति,न सशक को सुख न शासित को आराम,न मालिक को सुख,न ही मजदूर को. सभी हैरान,परेशानहैं,इसका मूल कारण 'प्यार का अभाव'.यदि आज जान जान के मन में प्यार की मन्दाकिनी प्रवाहित हो जाये तो विश्व में शांति की हरियाली लहलहा उठे. सुख के सुंदर सुगंधित सुमन खिल उठे.
महापुरषों की कृपा दृष्टि जिस पर पड  जाये,उसका कल्याण तो निश्चित ही हैं. उनके जीवन को आबाद बना देते हैं. हीरा कभी नहीं कहता की मेरी कीमत लाख की हैं या करोड़ कि.उसकी  चमक ही उसकी कीमत बता देती हैं. गुलाब कभी नहीं कहता की मेरे जैसी सुंदरता व सुगंध अपना आकर्षण पैदा किये बिना नहीं रहती.महापुरषों के आत्मिक गुणों की चमक,सुगंधा व सुंदरता जग जाहिर करने की बात नहीं होती,गुण तो अपनेआप प्रकट हो जाते हैं. महापुरुष दुनिया में रहते हैं,परन्तु उन्हें इससे कुछ लेना देना नही. गुरुदेव के ,गहन ज्ञान,परमात्मा भक्ति,सामाजिक उत्थान के लिए दिव्या दृष्टि,चिंतन-लेखन व प्रवचन से आकर्षित होकर विशाल भक्त वर्ग उनका आज भी दीवाना हैं. जल में कमल की तरह निर्लिप्त गुरुदेव सबके थे परन्तु किसी के ही कर नहीं रहे थे. नाम व प्रसिद्धि की चाहना में कोई दिलचस्पी नहीं थी. जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान अलग हुए तब लाहौर में गुरुदेव का सवेंदनशील ह्रदय समाज की छटपटाहट की पहचान सका था. घनघोर अंधेरे में जब सारी खिड़कियां व दरवाजे बंद हो,उस वक्त हवा के झोकें से थोड़ी सी खिड़की खुल जाये तो हमे उसकी कीमत बराबर महसूस हो रही हैं.
स्वयं घिस घिस कर चंदन जग को शीतलता देता हैं,स्वयं घिस घिस कर मेहंदी रंग देती हैं,वृक्ष झुलस झुलसकर छावं देता हैं इसी तरह स्वयं कष्ट उठाकर भी महापुरुष औरों को प्रसन्नता देते हैं. गुरुदेव की इस चिंतन की चांदनी में दुनिया को ऐसा शीतल प्रकाश मिला जिसकी सुहानी किरणें आज भी अनेको के जीवन पथ को आलोकित करती हैं.
प्यार कितना  मधुर शब्द हैं,कितनी सुरीली और सुहावनी हैं इसकी ध्वनि. विश्व के प्रायः सभी महामानव इसे केंद्र बिंदु बनाकर इसके इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं. जैसे सूर्य और चंद्र के चारों और नक्षत्र परिक्रमा किया करते हैं.
पूज्यपाद गुरुदेव प्रेम के साक्षात रूप थे.उसके जीवन के रोम रोम में प्यार प्रवर्तमान हो रहा था. प्यार उनके जीवन का ध्रुवतारा था और उनका संपूर्ण जीवन इस महासाध्य की उपासना का एक अविरल स्त्रोत था. उनके जीवन का सारा स्वरुप ही प्रेम को केंद्र मानकर निर्धारित किया हुआ सा लगता था. प्यार के लिए उस महान आचार्य ने अनेक प्रयत्न किये थे.
वे उच्चकोटि के सहृदय आचार्य थे.उनका जीवन,आचार और विचार का पावन संगम था. आज के युग में प्रतिभा संपन्न विद्द्वानों की कमी नहीं हैं लेकिन गुरु वल्लभ जन जन के ह्रदय के हार और जनमन के सम्राट थे. सहृदयता,नियमबद्धता,परिश्रमशीलता,परदुःख कातरता आदि जो सद्गुण साधु जीवन में अपेक्षित हैं,वे सभी गुरुदेव में विद्धमान थे. उनका ह्रदय फूल से भी अधिक कोमल और मक्खन से भी अधिक मृद था. उनकी नवनीत सी स्निग्ध आहृदयता,विषण्ण हृदयों के लिए मरहम का काम देती थी. सुहावनी सुबह से भी उसका आकर्षण ज्यादा था. 
परम पूज्य गुरुदेव ने हमेशा समाज के विकास और उसके उत्थान पर ध्यान दिया. उन्हें क्रांतिकारी विचारक कहा जा सकता हैं क्योंकि उन्होंने धार्मिक कार्यों के साथ साथ सामाजिक व शिक्षा को सबसे ज्यादा महत्व दियज़ैन समाज में बड़ी बड़ी शिक्षण संस्थाएं आज उन्ही की दें हैं. उस समय इसका विरोध करनेवाले आज इसे जरुरी बता रहे हैं. वे हमेशा कहते की जिस समाज मैं शिक्षा नहीं उस समाज का कोई महत्व नही. वे आज भौतिक रूप से बेशक हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके विचारों की वजह से आज भी वे हैं. उनके कार्यों को,अधूरे सपनों को पूरा करना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.


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