कर्म के आधार पर है संसार में भिन्नता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
बुरे कर्मों से बचने को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के माध्यम से किया उत्प्रेरित
घोड़बंदर रोड - ठाणे :- (महाराष्ट्र) :-32 जैन आगमों में सबसे बड़ा ग्रन्थ भगवती सूत्र है। इस आगम के सूत्रों के आधार पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी नियमित रूप से श्रद्धालुओं को नवीन प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। मुम्बई के नन्दनवन परिसर में बना तीर्थंकर समवसरण अपने तीर्थंकर के प्रतिनिधि के श्रीमुख से आगम सूत्रों का श्रवण करने और अपने जीवन को उससे भावित बनाने को नित्य प्रति श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में उपस्थित हो रहे हैं। इसके साथ ही श्रद्धालुओं को राजस्थानी भाषा में तेरापंथ धर्मसंघ के नवें अनुशास्ता आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित कालूयशोविलास के आख्यान को श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। देशभर से पहुंचे श्रद्धालु नन्दनवन परिसर में रहकर भी चतुर्मास का पूर्ण लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
मंगलवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। एक ही जीव भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त कर लेता है। एक बच्चा जन्म लेता है शिशु रूप में, फिर किशोर, युवा, प्रौढ और वृद्धावस्था को प्राप्त करता है और फिर मृत्यु को भी प्राप्त कर लेता है। जीव कभी नरक, तीर्यंच, मनुष्य और कभी देव गति में भी पैदा होता है। कोई-कोई भव्य जीव साधना के आधार पर मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। इस तरह अनेकोें विभाग प्राप्त हो जाते हैं। मनुष्य की तुलना में नरकीय और देव गति के जीवों की संख्या बहुत अधिक होती है। यह जीव की व्यवहार राशि में भिन्नता है। अव्यवहार राशि के जीव जो अनंत काल से वनस्पतिकाय में जन्म-मरण कर रहे हैं। अव्यवहार राशि तो मानों जीवों का अक्षय कोष है।
दुनिया की समस्त भिन्नताएं कर्मों के आधार पर होती हैं। जैन दर्शन कर्मवाद को मानने वाला है। कोई गोरा, कोई काला, कहीं जन्म, कहीं मृत्यु, कहीं शादी तो कहीं दीक्षा, कितने देश, कितनी भाषाएं, कितने रूप आदि की विभिन्नताएं देखने को मिलती हैं। मनुष्यों में ही कोई बुद्धिमान होता है तो कोई मंदबुद्धि भी होता है। दुनिया के अस्पतालों में देखें तो कितने-कितने मरीज अपने-अपने रोगों का उपचार करा रहे होते हैं तो कितने-कितने स्वस्थ लोग भी अपने-अपने काम में जुटे रहते हैं। कितने मनुष्य शांत स्वभाव वाले होते हैं तो कितने अत्यधिक क्रोध वाले भी होते हैं। कितने-कितने मनुष्य दीर्घजीवी होते हैं तो कितने-कितने लोग अल्पायु वाले भी होते हैं। कितने-कितने लोगों को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तो कितने अपमानित-सा जीवन भी जीते होंगे। कितने-कितने उद्योगपति हैं, धनाढ्य हैं तो दुनिया में कितने निर्धन भी हैं।
यह भी भिन्नताएं कर्म के कारण ही होती है, अकर्म से नहीं। आदमी इस सिद्धांत को समझकर अच्छा कर्म करने का प्रयास करे। आदमी अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में भी समताभाव रखने का प्रयास करे और अपने पूर्वकृत कर्मों को धर्म-साधना, स्वाध्याय, जप, तप के द्वारा काटकर हल्का बनने का प्रयास करे। आदमी को बुरी प्रवृत्तियों को छोड़ने और अपने कर्म को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास का सरसशैली में वाचन करते हुए गंगापुर चतुर्मास के दौरान परम पूज्य कालूगणी के स्वास्थ्य में हुई गड़बड़ी के बाद संघ की आगे की व्यवस्था पर पूज्य कालूगणी और मुनि मगनजी के बीच हुई गुप्त वार्ता और उसके घोषणा से संबंधित प्रसंगों का वर्णन किया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें