जेब में न हो मोबाइल, पर चेहरे पर रखें स्माइल - संत ललितप्रभ


दीपक आर.जैन /पुना 
आदिनाथ सोसायटी में पारिवारिक प्रेम पर  विशेष प्रवचन
पुना में चातुर्मास हेतू बिराजमान महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि खुशियां किसी के बाप की नहीं, अपने आपकी होती है। अगर हमारा फैसला है कि मैं हर हाल में खुश रहूँगा तो दुनिया की कोई ताकत हमें नाखुश नहीं कर सकती।उन्होंने कहा कि आनंद हमारा स्वभाव है इसलिए खाने को मिल जाए तो खाने का आनंद लें और न मिले तो उपवास का आनंद लें, चलें तो यात्रा आनंद लें और बैठें तो आनंद की यात्रा करें। शादी हो जाए तो संसार का आनंद लें और न हो तो शील का आनंद लें। व्यक्ति को हर परिस्थिति का आनंद लेने की कला सीख लेनी चाहिए। जो अपने आपको किसी भी हालत में प्रभावित होने नहीं देता वह सदा खुश रहता है।

ललितप्रभविजयजी श्री शांतिनाथ जैन टेम्पल द्वारा सोलापुर बाजार स्थित शांतिनाथ मंदिर में आयोजित सत्संग समारोह के दौरान धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दुनिया में जो मिला है, जैसा मिला है, उसका स्वागत करना सीखें। अगर बेटा कहना माने तो ठीक और न कहना मानें तो सोचें कि रोज-रोज कहने की झंझट समाप्त हो गई। हमें कहीं सम्मान मिलने वाला, पर
उसके बदले अपमान मिल जाए तो उसे सहजता से स्वीकार कर लें। उदाहरण के माध्यम से समझाते हुए संतश्री ने कहा कि कभी जीवन में सुख आए तो समझना चाचाजी आए हैं वे सौ का खाएँगे और पाँच सौ देकर के जाएंगे और दुख आए तो समझना दामाद आया है, दो सौ का खाएगा और ऊपर से हजार लेकर जाएगा। फिर भी हम चाचा से ज्यादा खुश दामाद के आने पर होते हैं। इसलिए जीवन में सुख आए तो कहिए वेलकम, पर दुख आए तो कहिए मोस्ट वेलकम। हर हाल में संतुष्ट रहें - खुश रहने का मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि भगवान ने हमें हमारे भाग्य से ज्यादा दिया है इसलिए नहीं का रोना रोने की बजाय हर हाल में संतुष्ट रहें और जो मिला है उसके लिए भगवान को शुकराना अदा करें। खुश रहने के दूसरे मंत्र में संतश्री ने कहा कि मुस्कुराता हुआ
चेहरा दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा होता है। काला व्यक्ति भी जब मुस्कुराता है तो बहुत सुंदर लगता है, और गौरा अगर मुँह लटकाकर बैठ जाएतो बहुत भद्दा दिखने लग जाता है।
गुरुदेव ने कहा की  हर दिन की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें। हमारे जेब में भले ही न हो मोबाइल पर चेहरे पर सदा रहे स्माइल।उदाहरण से सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि जब हम फोटोग्राफर के सामने पांच सैकंड मुस्कुराते हैं तो हमारा फोटो सुंदर आता है और हम अगर हर पल मुस्कुराएंगे तो सोचो हमारी जिंदगी कितनी सुंदर बन जाएगी। घर में प्रेम और त्याग से जिएं-संतप्रवर ने कहा कि स्वर्गीय हुए बिना अगर घर को स्वर्ग बनाना है तो घर में प्रेम और त्याग को लाइए। आज विश्व प्रेम की जरूरत बाद में है, पारिवारिक प्रेम की जरूरत पहले है। हमसे सामायिक-प्रतिक्रमण, पूजा-पाठ हो तो अच्छी बात है, पर हम ऐसा कोई काम न
करें कि जिससे हमारे घर वालों की आँखों में आँसू आए। अगर कोई एक तरफ घर वालों का दिल दुखाता है और दूसरी तरफ धर्म-कर्म करता है तो उसका सारा धर्म-कर्म व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति मंदिर-स्थानक में आधा-एक घंटा रहता है और घर में तेइस घंटे इसलिए वह धर्म की शुरुआत मंदिर-स्थानक से नहीं, घर से करें। उन्होंने कहा कि स्वर्ग-नरक किसी आसमान या पाताल
में नहीं, घर में ही है। जिस घर में सास-बहू, देराणी-जेठाणी, भाई-भाई हिलमिलजुलकर रहते हैं और सुख-दुरूख में सहभागी बनते हैं वह घर स्वर्ग है और जिस घर में पाँच भाइयों के होते हुए बूढ़े माँ-बाप को अपने हाथों से खाना बनाना पड़ता है वह घर नरक है।


ललितप्रभविजयजी म.सा. ने बताया की एक-दूसरे को निभाने का बड़प्पन दिखाएं।संतश्री ने बहनों से कहा कि वे सब कुछ पीहर से लेकर आईं लेकिन सुहाग तो सास-ससुर ने ही दिया है। आप कुछ न करें, बस, जितने साल का आपको पति मिला है, आप उतने साल तक सास-ससुर की सेवा करने और उन्हें निभाने का बड़प्पन अवश्य दिखाएं। उन्होंने सासु माताओं से कहा कि आपकी बहू आपके बेटे से भी बढ़कर है जिसने आपके बेटे के घर को बसाने के लिए अपने माँ-बाप छोड़े, जाति और पहनावे को बदला। उसने तो
इतना त्याग किया, पर क्या आप उसे निभाने का थोड़ा-सा भी बड़प्पन नहीं दिखा सकते। जिस तरह आपने अपनी बेटी की गलतियों को छिपाया, वैसे ही बहू की गलतियों को भी छिपाएं, उन्हें उघाडने का पाप कदापि न करें। इससे पूर्व संत ललितप्रभ महाराज के सोलापुर बाजार पहुंचने पर श्रद्धालुओं द्वारा जयकारों के साथ जोरदार स्वागत किया गया।  पुना सातारा रोड पर
आदिनाथ सोसायटी स्थित आदिनाथ जैन स्थानक में पारिवारिक प्रेम पर प्रवचन हुए.

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