वल्लभसूरीस्वरजी का जीवन प्रेरक व अनुकरणीय हैं-यशोभद्रसूरी म.सा.


                                                         भायंदर में गुणानुवाद सभा 
दीपक आर.जैन 


भायंदर-एक विचारक ने कहा हैं 'सुख की चांदनी में सभी हंस सकते हैं,परन्तु दुःख की दोपहरी में हंसना सरल नही.'गुरुदेव ने सुख की सुबह चांदनी में ही नहीं बल्कि दुःख की दोपहरी में भी हंसना सीखा. कभी भी किसी भी अवस्था में आप सदा मुस्कराते रहे. मुश्किलें उन्हें हतोत्साहित नहीं करती पर प्रोत्साहित ही करती थी.सदा प्रसन्न रहना ही गुरुदेव का सहज गुण था.आपका ऊर्जास्वल व्यक्तित्व होने के कारण निर्मल प्रेरक जीवन के लिए अनुकरणीय हैं. 
 उपरोक् विचार भायंदर(पश्चिम)में श्री आत्म वल्लभ जैन ज्ञान मंदिर में चातुर्मास हेतू बिराजमान गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानंदसूरीस्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती ज्योतिषाचार्य आचार्य श्री यशोभद्रसूरीस्वरजी म.सा. ने व्यक्त किये. पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभसूरीस्वरजी म.सा. की 62 वी स्वर्गारोहण तिथी पर आयोजित गुणानुवाद सभा में व्यक्त किये. आचार्य श्री ने कहा की गुरु वल्लभ जागरूक संयमी साधक ही नहीं परन्तु गंभीर चिंतक भी थे. अपने मौलिक चिंतन सेउन्होंने साहित्यिक संसार को ही चमकृत नहीं किया अपितु आंतरिक जागृत को भी उद्बोधित किया है.जीवन के अंतिम समय तक वे समाजहित के कार्य में लगे रहे. शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने उस समय कार्य किया जब पूरा समाज इसके खिलाफ था. गुरु  हमेशा कहा की समाज में शिक्षा के स्टार को बढाइये क्योंकि पढ़ा लिखा व्यक्ति स्वावलंबी भी होता हैं और उसे किसी के सहारे की जरुरत नहीं होती.
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने बताया की आपकी तेजस्वितापूर्ण प्रभा प्राणीमात्र के लिए अनुकरणीय हैं और हमेशा रहेगी. श्री विजय वल्लभ जनकल्याण ट्रस्ट के सयोंजक दीपक आर जैन ने कहा की आज समाज को वल्लभ की जरुरत हैं.गुरु वल्लभ ने शिक्षा के क्षेत्र में कदम बढाकर समाज को नयी दिशा प्रदान की. कार्यक्रम में एक दिन पूर्व बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया. इस अवसर पर दिनेश कोठारी,विक्रम राठौड़,दिलीप पुनमिया,सुरेश सिरोया आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. कार्यक्रम का लाभ महेंद्र मोतीलालजी रांका व सतीश नैनमलजी सुराणा परिवार ने लिया. 09 अक्टूबर को पितृदोष निवारण पूजन होगा तथा 24 ओक्टोबर को आचार्य श्री यशोभद्रसूरीस्वरजी म.सा. का जन्मदिन मनाया जायेगा.     

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