अरावली पर्वतमाला, राजस्थान की जल जीवनरेखा हो सकती हैं
जल प्रबंधन पर तीस वर्षों की मांग और मोदी के आज के विचार, सवालों के घेरे में
भरतकुमार सोलंकी
पिछले तीन दशकों से जल प्रबंधन और बांध निर्माण को लेकर मैंने बार-बार प्रधानमंत्री कार्यालय और संबंधित विभागों का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की। मेरी मांगें हमेशा स्पष्ट रही हैं: अरावली पर्वतमाला में बड़े जलाशयों का निर्माण, नदियों को जोड़कर जल संसाधनों का पुनर्वितरण और किसानों की सिंचाई की समस्याओं का स्थायी समाधान। लेकिन इन मुद्दों पर आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। अब, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड और खजुराहो में अपने भाषणों में हुबहू वही बातें कही हैं, जो मैंने इन वर्षों में बार-बार उठाई हैं। यह संतोषजनक हैं कि यह मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर आया, लेकिन यह सवाल भी उठता हैं कि इन विचारों को अमलीजामा पहनाने में इतनी देर क्यों हुई?
मोदी जी ने अपने भाषण में जल संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जल प्रबंधन केवल एक सरकारी नीति नहीं, बल्कि समाज का कर्तव्य हैं। यह विचार बेहद प्रभावशाली हैं, लेकिन सवाल यह हैं कि क्या यह भाषण मात्र एक राजनीतिक रुख हैं, या इसके पीछे ठोस योजनाएं भी हैं? क्योंकि प्रधानमंत्री को यह गंभीरता गुजरात के मुख्यमंत्री रहते ही समझ आ गई थी, जब उन्होंने नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया। तो फिर वही नीति देश के अन्य क्षेत्रों, विशेषकर राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में क्यों लागू नहीं हो सकी?
अरावली पर्वतमाला, जो राजस्थान की जल जीवनरेखा हो सकती हैं, आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं।मैंने बार-बार कहा हैं कि इस पर्वतमाला में पांच बड़े बांधों का निर्माण पूरे मारवाड़ क्षेत्र की सिंचाई और पेयजल समस्याओं को हमेशा के लिए समाप्त कर सकता हैं।लेकिन क्या मोदी सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया हैं?
प्रधानमंत्री का यह कहना कि जल प्रबंधन से देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा, एक महत्वपूर्ण विचार हैं। लेकिन यही विचार तीस वर्षों से केवल पत्रों, अपीलों और आंदोलनों तक सीमित क्यों रहा? मोदी जी के पास अब अवसर हैं कि वे केवल भाषणों तक सीमित न रहें, बल्कि उन विचारों को लागू करें, जिन्हें वे अब राष्ट्रीय मंच पर दोहरा रहे हैं। जल प्रबंधन, सिंचाई और जलाशयों का निर्माण केवल एक क्षेत्रीय आवश्यकता नहीं हैं, यह भारत की कृषि और औद्योगिक प्रगति की कुंजी हैं।
पिछले अगस्त में, जब जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल से मैंने इस विषय पर चर्चा की, तो उन्होंने न केवल मेरी बात को गंभीरता से सुना, बल्कि देश भर में 500 नए बांधों के निर्माण की योजना पर सहमति भी व्यक्त की। दिल्ली के कन्वेंशन सेंटर में आयोजित उसी कार्यक्रम में उन्होंने मंच से घोषणा भी की कि “हम शीघ्र ही मोदी जी के नेतृत्व में देश भर में 500 नए बांध निर्माण की कार्य योजना पर काम शुरू करेंगे।” यह बयान आशा की एक नई किरण लाया था, लेकिन अब तक इसके क्रियान्वयन को लेकर कोई ठोस कदम नहीं दिखा।
प्रधानमंत्री और उनकी सरकार से यह उम्मीद हैं कि वे जल शक्ति मंत्री की घोषणा और अपने भाषण के विचारों को वास्तविकता में बदलेंगे। यह समय की मांग हैं और यदि अब भी इस पर काम नहीं हुआ, तो जल प्रबंधन को लेकर इस देश की समस्याएं और विकराल रूप धारण कर लेंगी।
(लेखक आर्थिक सलाहकार हैं)
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