" गुरु गौतम ध्यान धरे "

 कौन थे अनंत लब्धिनिधान गुरु गौतमस्वामी 
केवलज्ञान हो जाने पर भगवान महावीर की प्रथम धर्म देशना ऋजुवालिका नदी के किनारे हुई थी और दूसरी देशना मध्यम पावा में देवताओं द्वारा रचित समवसरण में हुई थी। प्रभु की वाणी से प्रभावित होकर इन्द्रभूति सहित ११ महापंडितों ने अपने ४४०० शिष्यों के साथ दीक्षा लेकर भगवान महावीर के शिष्य बन गये. ७२ वर्ष की उम्र में प्रभु ने अपना अन्तिम चातुर्मास पावापुरी में किया.निर्वाण के समय पर गौतम अत्यधिक रागग्रस्त न हो इस कारण से प्रभु ने उन्हें अपने से दूर सोम शर्मा ब्राम्हण को प्रतिबोध देने के लिए भेज दिया.कार्तिक वदि अमावस्या को प्रभु ने १६ प्रहर की धर्म देशना दी और समस्त कर्मों का क्षय कर, देह त्यागकर निर्वाण प्राप्त किया। देवताओं ने मणिरत्नों का प्रकाश किया.मनुष्यों ने दीपक जलाकर अंधकार दूर किया और प्रभु के अंतिम दर्शन किए। तब से यह दीपोत्सव दीपावली बन गया। अपने गुरु महावीर के निर्वाण के समाचार सुनते ही मोहग्रस्त गणधर गौतम भाव-विव्हल हो गये किन्तु शीघ्र ही वे वीतराग चिन्तन में आरुढ़ हो गये.आत्मोन्नति की श्रेणियाँ पारकर उन्हें प्रातःकाल यानी कार्तिक सुदि १, आज ही के दिन उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। गौतमस्वामी की उस केवलज्ञान भूमि को हम गुणियाजी कहते हैं। प्रभु निर्वाण के पश्चात विशाल धर्म संघ का उत्तरदायित्व चतुर्थ गणधर सुधर्मास्वामी के कंधों पर आ गया। सुधर्मास्वामी के निर्वाण के पश्चात उनके शिष्य जंबूस्वामी संघ के नायक आचार्य बने। वि. पू. ४०६ में आर्य जंबूस्वामी का निर्वाण हुआ। जंबूस्वामी के निर्वाण के साथ ही भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में केवलज्ञान परम्परा लुप्त हो गई है. 
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इन्द्रभूति गौतम का परिचय >>
तत्कालीन मगध देश में गुब्बर गांव में माँ पृथ्वी और पिता वसुभूति ब्राम्हण का पुत्र इन्द्रभूति था जो बाद में गौतम कहलाये.अनेको ऋद्धियों-सिद्धियों के अलावा गौतम को ४८ लब्धियां प्राप्त थी.जंगाचरण और अक्षीण-महानसी लब्धि भी उन्हें हासिल थी.कहा जाता है उनके अंगूठे में अमृत बसता था और वे सूर्य की किरणें पकड़कर अष्टापद तीर्थ पहूँच जाते थे.उन्होंने 1500 तपस्विओं को खीर का पारणा कराकर उनका उद्धार कराया था.
जय प्रभु महावीर,जय गुरु गौतम.
-गुणियाजी तीर्थ- 
पावापुरी से २० कि.मी. दूर पटना-राँची मार्ग पर नवादा स्टेशन से ३ कि.मी.दूर गुणाया गांव, यही गुणियाजी है जो गुणशील का अपभ्रंश माना जाता है.भगवान महावीर के गुणशील चैत्य में बहुत समय तक विचरने और समवसरण रचने के उल्लेख शास्त्रों में हैं.यहाँ मंदिर में गौतमस्वामी की पूजनीय पादुकाएं है.रहने के लिए धर्मशाला है. 
<•> मोहनलाल यु. जैन <•>

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