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संस्कारों का सिंचन करती पुस्तक टू फ्रेंड्स -समस्यामुक्त जीवन हेतू संस्कार जरूरी-मणिप्रभाश्रीजी

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दीपक आर.जैन      मुंबई-  आज  के इस  युग में बाहरी साधनों से भले ही हम प्रगति की राह पर हो परंतु पाश्चात्य संस्कृति की लालसा के कारण मनुष्य अपनी मानवता और भारतीय संस्कृति को भूलता जा रहा हैं. आज घर घर की स्थिति बिगड़ती जा रही हैं. बच्चे सुनते नहीं हैं,बच्चे कहना नहीं मानते,अपनी इच्छानुसार करते हैं जैसी शिकायते रोजमर्रा की हो गयी हैं. परिस्थिति ऐसी हैं की बचपन से ही बच्चे अपने मन की करने के आदी हो जाते हैं और शादी जैसे फैसले भी माता-पिता के खिलाफ जाकर ले लेते हैं जिसकी वजह से पूरा परिवार बिखर जाता हैं तथा कई परिस्थितियों में तो उन्हें जीवनभर संघर्ष करना पड़ता हैं. उपरोक्त विचार कलिकाल कल्पतरु,विश्व वंदनीय परम पूज्य आचार्य श्री राजेंद्रसूरीस्वरजी म.सा.के पटधर   गच्छाधिपति आचार्य श्री हेमेंद्रसूरीस्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा ने हाल ही में प्रकाशित  अपनी पुस्तक टु फ्रेंड्स में व्यक्त किये हैं.  इस पुस्तक में गुरुमैया ने बताया हैं की विज्ञानं की दृष्टि से हम ज़माने से कई कदम विकास की और हैं तो फिर मानवता,सहयोग,सेवा,कर्तव्य,और समर्पण की भावना से उतने ह

वल्लभसूरीस्वरजी का जीवन प्रेरक व अनुकरणीय हैं-यशोभद्रसूरी म.सा.

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                                                         भायंदर में गुणानुवाद सभा  दीपक आर.जैन  भायंदर- एक विचारक ने कहा हैं 'सुख की चांदनी में सभी हंस सकते हैं,परन्तु दुःख की दोपहरी में हंसना सरल नही.'गुरुदेव ने सुख की सुबह चांदनी में ही नहीं बल्कि दुःख की दोपहरी में भी हंसना सीखा. कभी भी किसी भी अवस्था में आप सदा मुस्कराते रहे. मुश्किलें उन्हें हतोत्साहित नहीं करती पर प्रोत्साहित ही करती थी.सदा प्रसन्न रहना ही गुरुदेव का सहज गुण था.आपका ऊर्जास्वल व्यक्तित्व होने के कारण निर्मल प्रेरक जीवन के लिए अनुकरणीय हैं.    उपरोक् विचार भायंदर(पश्चिम)में श्री आत्म वल्लभ जैन ज्ञान मंदिर में चातुर्मास हेतू बिराजमान गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानंदसूरीस्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती ज्योतिषाचार्य आचार्य श्री यशोभद्रसूरीस्वरजी म.सा. ने व्यक्त किये. पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभसूरीस्वरजी म.सा. की 62 वी स्वर्गारोहण तिथी पर आयोजित गुणानुवाद सभा में व्यक्त किये. आचार्य श्री ने कहा की गुरु वल्लभ जागरूक संयमी साधक ही नहीं परन्तु गंभीर चिंतक भी थे. अपने मौलिक चिंतन सेउन्होंने सा

महामानव का महाप्रयाण देशभर में शोक की लहर तपागच्छाधिपति आचार्य श्री प्रेमसूरीस्वरजी का निधन

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दीपक आर जैन  आज का सूर्योदय सूर्यास्त के समान लगा जब सुबह समाचार मिला की शंखेश्वर महातीर्थ में श्री 108 पार्श्व भक्ति महाप्रासाद के प्रेरक,जिनसाशन गौरव सर्वोच्च दीक्षा पर्यायी परम पूज्य तापगच्छाधिपति आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीस्वरजी म.सा.का मुंबई में निधन हो गया. उनके निधन से देशभर के जैन समाज में शोक की लहर हैं.उनका  निधन मात्र जैन समाज नही बल्कि संपूर्ण मानवजाति के लिए अपूर्णीय क्षति हैं.गुरुदेव का पार्थिव शरीर दर्शनार्थ श्री बाबु अमीचंद जैन मंदिर,वालकेश्वर में रखा गया था.पालखी दोपहर 02 बजे शुरू हुई तथा पंचशील प्लाजा,धर्म पेलेस,हुजिस रोड से होती हुई बाणगंगा पहुची जहाँ अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ.अंतिम संस्कार का चढ़ावा 11 करोड से अधिक में गया जिसका लाभ पांच परिवारों ने मिलकर लिया. 87 साल का दीक्षा पर्याय और जिनशासन का विकास जीवन के अंत समय तक सर्वोपरि रहा.    वर्तमान समय मे उनकी अत्यंत आवश्यकता थी.पालीताणा मे मार्च मे हुआ श्रमण सम्मेलन उनकी वजह से ही संभव हुआ.96 वर्ष होने के बाद भी जब भी उनके दर्शन का मोका मिला उन्हें व्यस्त देखा.अखबारों को पढ़ना उन्होंने अंतिम समय तक नही छो

जेब में न हो मोबाइल, पर चेहरे पर रखें स्माइल - संत ललितप्रभ

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दीपक आर.जैन /पुना  आदिनाथ सोसायटी में पारिवारिक प्रेम पर  विशेष प्रवचन पुना में चातुर्मास हेतू बिराजमान महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि खुशियां  किसी के बाप की नहीं, अपने आपकी होती है। अगर हमारा फैसला है कि मैं हर  हाल में खुश रहूँगा तो दुनिया की कोई ताकत हमें नाखुश नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि आनंद हमारा स्वभाव है इसलिए खाने को मिल जाए तो खाने का  आनंद लें और न मिले तो उपवास का आनंद लें, चलें तो यात्रा आनंद लें और  बैठें तो आनंद की यात्रा करें। शादी हो जाए तो संसार का आनंद लें और न हो  तो शील का आनंद लें। व्यक्ति को हर परिस्थिति का आनंद लेने की कला सीख  लेनी चाहिए। जो अपने आपको किसी भी हालत में प्रभावित होने नहीं देता वह  सदा खुश रहता है। ललितप्रभविजयजी श्री शांतिनाथ जैन टेम्पल द्वारा सोलापुर बाजार स्थित  शांतिनाथ मंदिर में आयोजित सत्संग समारोह के दौरान धर्मसभा को संबोधित  कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दुनिया में जो मिला है, जैसा मिला है, उसका  स्वागत करना सीखें। अगर बेटा कहना माने तो ठीक और न कहना मानें तो सोचें  कि रोज-रोज कहने की झंझट समाप्त हो गई। हमें कहीं सम्मान म

चरित्ररत्नविजयजी म.सा.

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राष्ट्र संत गच्छाधिपति  आचार्यश्री जयन्तसेन सुरिश्वर जी म. सा के शिष्य मुनिराज श्री चरित्ररत्नविजयजी म.सा. व मुनिराज नीपुणरत्नविजयजी म.सा. से आशीर्वाद लेकर चर्चा करते तर्क मेहता के शैलेश लोढा.   

आचार्य जयंतसेनसूरीस्वरजी को लोकसंत की उपाधि

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                                             -                                                                                                                        आचार्य जयंतसेनसूरीस्वरजी को लोकसंत की उपाधि   दीपक आर.जैन/रतलाम                                                                                                                                     आचार्य जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा ने कहा कि *भगवान महावीर* ने जनकल्याण की बात कही हैं.भगवान महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करें क्योंकि महावीर ने प्राणीमात्र के कल्याण की कामना की है। जियो और जीने दो का संदेश दिया है। महावीर के संदेश को जीवन में उतारे तो हमारा चातुर्मास सार्थक होगा। आपने कहा कि सुखमय जीवन चाहते हैं तो क्षमा देते चलो। *क्षमा सिर्फ मांगने से काम नहीं चलेगा क्षमा देनी भी पड़ती है तभी समाज में शांति स्थापित होगी। आपने कहा कि जब तक क्रोध रहेगा क्षमा मांगना निरर्थक रहेगा। क्रोध हमें पथ से विचलित कर देता है, इसलिए अहंकार हमें क्षमा मांगने नहीं देता। मोह, माया लाभ छोडक़र हमें बैरभाव खत्म करना है। *महावीर क

लर्न एंड टर्न पाठशाला का शुभारम्भ

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श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में शिविर   दीपक आर जैन  भायंदर - भायंदर पश्चिम स्थित सबसे पुराने ऐसे श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में कलिकाल कल्पतरु परम पूज्य आचार्य श्री राजेंद्रसूरिस्वरजी म.सा. के पटधर गच्छाधिपति आचार्य श्री हेमेंद्रसूरीस्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या साध्वी उपशमयशाश्रीजी म.सा.,साध्वी श्री संवरयशाश्रीजी म.सा.,साध्वी श्री शुद्धयशाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में रविवार 18 सितंबर को पुरुष व महिलाओं के लिए भव्य शिविर का आयोजन किया गया हैं. इस शिविर में 15 से 50 साल तक की महिलाएं भाग ले सकती हैं जबकि पुरुषों के लिए वय मर्यादा नहीं हैं.  भायंदर(पश्चिम) स्थित श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर के दक्ष बंबोरी प्रवचन हॉल में दोपहर 02 से चार बजे तक होनेवाली शिविर में साध्वीजी म.सा. मानसिक शांति,मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा हैं?हरबार मुझे क्यों सहन करना पड़ रहा हैं?साथ ही मनुष्य भाव कितना दुर्लभ आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा करेगी.साध्वीजी म.सा. की प्रेरणा से हर रविवार को शाम 07 बजे से लर्न एंड टर्न पाठशाला  शुरुवात

भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं गणेश -ललित गर्ग-

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गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे सात्विक देवता हैं और विघ्नहर्ता हैं। वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हंै। हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए है। मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक का चरित्र हंै। गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं, ऐसे सार्वभौमिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सम्पूर्ण दुनिया में उमंग एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गणेशोत्सव हिन्दुओं का एक उत्सव है। महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हजारों स्थानों पर भारतीय कला और संस्कृति की भिन्न-भिन्न गणेश-छवियों के दर्शन होते हैं। रात्रि में सर्वत्र रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। अंतिम दिन बड़ी धूमधाम से गणेश-प्रतिमाओं क