बेहोशी के कारोबार: उधारी का साम्राज्य
उधारी के जाल से बाहर निकलना जरूरी भरतकुमार सोलंकी आ ज के व्यापार जगत में ऐसे कई महारथी मिल जाएंगे जो दिन-रात जागते हुए भी असल में बेहोशी में जी रहे हैं। वे आपको बड़े गर्व से बताएंगे कि उनका कारोबार फल-फूल रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि उनकी दुकान, मुनाफे से नहीं, बल्कि उधारी की बैसाखियों पर खड़ी है। इन बेहोश व्यापारी बंधुओं की दुनिया में, मुनाफे का कोई अस्तित्व नहीं, सिर्फ उधार का खेल चलता है। कई वर्षों से यह 'महानुभाव' एक-दूसरे से पैसे मांगकर अपने कारोबार की गाड़ी खींच रहे हैं। दिन में बड़ी-बड़ी बातें, रात को उधारी की गिनती—यही उनकी दिनचर्या है। एक हाथ से उधार लेते हैं, दूसरे हाथ से किसी और को उधार दे देते हैं। अब आप इसे व्यापार कहें या उधारी का साम्राज्य, फर्क कौन समझे! दरअसल, यह उस चूहेदानी जैसा खेल है जिसमें खुद भी फंसे हैं और दूसरों को भी फंसा रहे हैं। इनसे पूछो कि आपके व्यापार में असली मुनाफा कहां है, तो जवाब में बड़ी-बड़ी बातें सुनने को मिलेंगी। "देखिए, बिजनेस ग्रोथ के लिए इन्वेस्टमेंट जरूरी है," और यह इन्वेस्टमेंट?—वह भी दूसरों के पैसे से! असल में, ये व्यापारी