अहिंसा है सुखी समाज का आधार -गणि राजेन्द्रविजयजी
दीपक आर.जैन / भायंदर हम सफल जीवन जी रहे हैं या असफल, सुखी हैं या दुःखी, आगे बढ़ रहे हैं या पीछे जा रहे हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस दृष्टि से देख रहे हैं या नाप रहे हैं? हम सफलता का मापदण्ड इस बात से तय करते हैं कि जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण अपनाया है। जिस चीज को हम अपना केन्द्र मानते हैं या धुरी बनाते हैं उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं। जिस दृष्टिकोण से जीवन का लक्ष्य बनाया है उसको पाने मंे जीवन की अधिकांश ऊर्जा लगाते हैं। सुख या दुःख वस्तु के संग्रह से नापा जायेगा. इस दृष्टिकोण से सुख-दुःख सापेक्षिक शब्द बन जाता है.किसी एक कार्य को करने में या कुछ उपलब्धियों को प्राप्त करने में एक व्यक्ति सुख की अनुभूति कर सकता है लेकिन दूसरा दुःख की.अतः यह व्यक्तिगत अनुभूति है और इसके निरपेक्ष मापदण्ड नहीं हो सकते.अतः जैसा एक व्यक्ति अपने लिए लक्ष्य तय करेगा वैसा ही उसका मापदण्ड होगा और उसी से सुख-दुःख, सफलता-असफलता तय करेगा व सुख-दुःख का आभास करेगा। वास्तविक या निरपेक्ष सुख और सुखी जीवन वस्तु आधारित नहीं है बल्कि सिद्धांत या मूल्य आधारित है और इस प्रकार का सुख सबके लिए समान अन