फिल्मे मनोरंजन का साधन हैं-मुरारका
मुंबई-फिल्मे सिर्फ मनोरंजन और अभिव्यक्ति का माध्यम हैं और इसकी आजादी सभी को होनी चाहिए. हर दौर में इतिहास की किसी भी घटना व व्यक्ति का मूल्यांकन अलग अलग तरीके से हो सकता हैं.फ़िल्म पद्मावती यह निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली का अपना नजरिया है और प्रस्तुतीकरण में थोड़ा बहुत फर्क हो सकता हैं परंतु इतिहास ना तो कभी बदला हैं और ना ही बदलेगा. व्यक्ति को अपना अभिप्राय देने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए.
उपरोक्त विचार राजस्थानी फ़िल्म असोसिएशन मुंबई के उपाध्यक्ष व IMPPA के सदस्य दीनदयाल मुरारका ने पद्मावती फिल्म पर उठे विवाद पर व्यक्त किये.उन्होंने कहा की फ़िल्म को किस तरह प्रस्तुत किया जाये इस बारे में निर्माता निर्देशक ज्यादा जानता हैं. विरोध के पहले फ़िल्म को देखकर जानकारी ले लें उसके बाद प्रतिक्रिया और आन्दोलनों के बारे में निर्णय लिया जाना चाहिए.बिना सोचे समझे अगर विरोध हुआ तो कोई भी ऐतिहासिक फिल्मे बनाने के बारे में सोचेगा. मुरारका ने कहा की ऐसे घटनाक्रम कहां तक सच्चे व सही है इसके ज्यादा प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं. रानी पद्मावती के बारे में इतिहासकारों में भी मतभेद हैं. इतिहास अपनी जगह हैं व फ़िल्म अपनी जगह हैं. फिल्म मात्र मनोरंजन का साधन हैं. यह मात्र काल्पनिक प्रस्तुतिकरण हैं. यह कुछ समय के लिये ही समाज व व्यक्ति को प्रभावित करती है किंतु अंत में तो व्यक्ति का विवेक ही जीवित रहता हैं.
मुरारका ने कहा की फ़िल्म निर्माण की विद्या घटना क्रम के साथ साथ कल्पना का मिश्रण लिये होती हैं ताकि वो मनोरंजक बन सके,बॉक्स ऑफिस पर सफल हो सके.
उपरोक्त विचार राजस्थानी फ़िल्म असोसिएशन मुंबई के उपाध्यक्ष व IMPPA के सदस्य दीनदयाल मुरारका ने पद्मावती फिल्म पर उठे विवाद पर व्यक्त किये.उन्होंने कहा की फ़िल्म को किस तरह प्रस्तुत किया जाये इस बारे में निर्माता निर्देशक ज्यादा जानता हैं. विरोध के पहले फ़िल्म को देखकर जानकारी ले लें उसके बाद प्रतिक्रिया और आन्दोलनों के बारे में निर्णय लिया जाना चाहिए.बिना सोचे समझे अगर विरोध हुआ तो कोई भी ऐतिहासिक फिल्मे बनाने के बारे में सोचेगा. मुरारका ने कहा की ऐसे घटनाक्रम कहां तक सच्चे व सही है इसके ज्यादा प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं. रानी पद्मावती के बारे में इतिहासकारों में भी मतभेद हैं. इतिहास अपनी जगह हैं व फ़िल्म अपनी जगह हैं. फिल्म मात्र मनोरंजन का साधन हैं. यह मात्र काल्पनिक प्रस्तुतिकरण हैं. यह कुछ समय के लिये ही समाज व व्यक्ति को प्रभावित करती है किंतु अंत में तो व्यक्ति का विवेक ही जीवित रहता हैं.
मुरारका ने कहा की फ़िल्म निर्माण की विद्या घटना क्रम के साथ साथ कल्पना का मिश्रण लिये होती हैं ताकि वो मनोरंजक बन सके,बॉक्स ऑफिस पर सफल हो सके.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें