विकलांगता कभी बाधक नहीं बनी नृत्य में

देश के नंबर वन दिव्यांग भवई डांसर हैं सुनील परिहार 
विकलांगता कभी बाधक नहीं बनी नृत्य में 
दीपक आर जैन/भायंदर 
भायंदर-हाल ही में सामाजिक संगठन युथ फोरम व अवर लेडी ऑफ़ वेलंकनी हाईस्कूल की और से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को गौरान्वित करनेवाले राजस्थान के पाली जिला के सुनील परिहार को भायंदर में आयोजित भव्य कार्यक्रम में  प्रतिभा सम्मान से नवाजा गया. इस अवसर पर बोलते हुए देश के चुनिंदा लोक नृत्य कलाकारों में से एक हैं.परिहार ने सिर पर 15 से ज्यादा मटके रखकर व लगातार दो घंटे से ज्यादा नृत्य कर विश्व कीर्तिमान बनाया.यह सम्मान उन्हें नै हैदराबाद में आयोजित भव्य कार्यक्रम में प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया व रॉयल सक्सेस इंटरनेशनल बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दिया गया.लुप्त होती इस संस्कृति को बचाने के लिए वे हर प्रयास करेंगे.
बचपन से ही पोलियो से ग्रसित इस कलाकार ने कहा की विकलांगता उनके नृत्य में कभी बाधक नहीं बनी.  देश के श्रेष्ठतम कलाकारों में अपना स्थान रखनेवाले सुनील ने इसे अपना जीवन बना लिया हैं.वे पिछले 22 साल से यह नृत्य कर रहे हैं.  राजस्थानी वेशभूषा में सजकर घुंघरुओं की झंकार पर झूम उठने वाले उनके नृत्य को देखकर एकबार तो दर्शक ठगे से रह जाते हैं. लेकिन जब नृत्य देखने के बाद कार्यक्रम में घोषणा होती हैं की कलाकार विकलांग है तो किसी को यकीन ही नहीं होता,लेकिन यह सत्य हैं.6 देशों में उन्होंने अपनी प्रतिभा को दिखाया हैं.
24 फरवरी,1980 को ओमप्रकाश व विद्या पंडित के घर जन्मे सुनील को बचपन से ही नृत्य सीखने का शौक था,परन्तु उनकी विकलांगता को देखते हुए कुछ अनिष्ट हो जाने के भय से परिवार हमेशा इंकार करते रहने से यह इच्छा मन मे दबी रह गई,लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था. 1999 में पाली के बांगड़ स्कूल में उन्होंने पहला शो किया.यह प्रेरणा उन्हें अपने स्कूल में ही नृत्यांगना को नृत्य करते देखकर मिली. नृत्य को लेकर जब लोगों ने उनका मजाक बनाया तो इच्छाशक्ति दृढ़ हो गयी और वे भागकर मुंबई आ गए. यहाँ स्टील फेक्ट्री में काम किया लेकिन मन तो नृत्य की और था तब पंडित कृष्णराव से नृत्य की बारीकियों को सीखा और 2000 में पहला शो पाली में किया और यह चलता ही रहा जो आज तक जारी हैं.महिला वेशभूषा में नृत्य करने पर वे कहते हैं की भवई नृत्य की खूबसूरती जो इस वेश में झलकती हैं वि पुरुष वेश में नहीं हैं. महिला वेश में साजो श्रृंगार की हजारों वस्तुए उपलब्ध हैं.उन्हें हाल ही में सिने अभिनेता विवेक ओबेरॉय ने नई दिल्ली में आयोजित भव्य कार्यक्रम में इसी कला में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया था.
हमारे लिए गौरव की बात -महापौर
मीरा-भायंदर महानगरपालिका की महापौर ज्योत्स्ना हसनाले ने उन्हें दोनों सम्मान के लिए बधाई दी व कहा की हमे गर्व हैं की ऐसे प्रतिभावान कलाकार शहर में रहते हैं. उन्होंने कहा की आज देश की संस्कृति को बचाने की आवश्यकता हैं जो काम सुनील कर रहे हैं.

चरी,भवई,तेराताली,दीपक नृत्य में महारत हासिल कर ली. आज तक वे दस हजार से ज्यादा कार्यक्रम देश विदेश में कर चुके हैं,जिनमे ईरान फोक फेस्टिवल,जयपुर विरासत फोक फेस्टिवल,मस्कत फोक फेस्टिवल,काला घोडा,आदि प्रमुख हैं. इस कला को दिखानेवाले मुश्किल से 10 कलाकार होंगे.कई संस्थाओं द्वारा वे सम्मानित किये जा चुके हैं. लोक नृत्य कला को जीवित रखने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए.सुधा चंद्रन और गुलाबो सपेरा से वे बहुत प्रभावित हैं. वे कहते हैं की सरकार अगर जगह और सहयोग दे तो वे इस कला को जीवित रखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.
भवई नृत्य की विशेषताएं 
भंवाई अथवा भवई नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोकनृत्यों में से एक हैं. यह नृत्य अपनी चमत्कारिता के लिए जाना जाता हैं. इस नृत्य में शारीरिक करतब दिखाने पर अधिक बल दिया जाता हैं. भंवाई नृत्य अब राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के साथ साथ विदेशों में भी बहुत प्रचलित हैं. नृतक इसमें सात से आठ घड़े सिर पर रखकर व उनका संतुलन बनाकर नृत्य करने के अलावा गिलास के ऊपर,तलवार की धार पर अपने पैर के तलवों को टीकाकार झूलते हुए नृत्य करते हैं. अनूठी नृत्य अदायगी,शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी की विविधता,के साथ ही नृत्य के दौरान जमीन पर पड़ा रुमाल मुंह से उठाना,तलवार की धार,कांच के टुकड़ों पर और नुकीली कीलों पर नृत्य करना  इसकी मुख्य विशेषताएं हैं. यह नृत्य तेज ले के साथ सिर पर सात से आठ घड़े रखकर किया जाता हैं.इस नृत्य में नये कौतहुल व सिरहन उत्पन्न करनेवाले कारनामे होते हैं.







      

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